कब्ज़ का समाधान गुदा द्वार के संकुचन के बाद शिथिलता में है
योगी अनूप
गुदा द्वार समस्या के निष्कासन का अंतिम द्वार है। यदि वही द्वार बंद हो जाए तो समझिए कि देह और मस्तिष्क में क्या होगा। कब्ज़ इसी अंतिम द्वार की समस्या का नाम है। सामान्यतः प्रारंभ के कुछ वर्षों में इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाता। व्यक्ति पूरक यानी अंदर भरने की प्रक्रिया का आनंद ले रहा होता है। उसे यह लगता है कि जब पूरक और पाचन की प्रक्रिया चल रही है, तो निष्कासन स्वाभाविक रूप से होगा ही। आखिरकार, मल के बाहर निकालने के लिए और कोई मार्ग तो है नहीं।
सम्भवतः इसी कारण व्यक्ति निष्कासन को समस्या मानता ही नहीं, लेकिन इसकी गंभीरता तब महसूस होती है जब उस स्थान पर रक्तपात शुरू हो जाता है। तब उसे समझ में आता है कि जीवन में केवल भोजन करना ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है भोजन का पाचन और मल का निष्कासन। इसी समाधान की तलाश में व्यक्ति दौड़ता है।
समस्या के मूल कारण को समझना आवश्यक है
किसी भी समस्या के समाधान से पहले उसके कारण को समझना चाहिए। यहाँ मैं केवल मानसिक कारणों की चर्चा करूंगा।
जिसे भोजन भरने की लत होती है, सामान्यतः उसे चीजों को एकत्रित करने की भी आदत होती है। गहरी दृष्टि से देखने पर यह पाया जाता है कि जिन्हें भरने की प्रवृत्ति होती है, उनकी प्रवृत्ति में अंगों को संकुचित करने की आदत भी शामिल हो जाती है। जैसे कि आँतों, गुदा द्वार, मूत्र मार्ग, डुओडेनम, डायफ्रैग्म, यहाँ तक कि आमाशय को भी संकुचित करने की प्रवृत्ति दिखने लगती है।
यहाँ तक कि चाहे व्यक्ति कितना भी रेचनयुक्त पदार्थों का सेवन करे, उसकी रेचन प्रक्रिया में सुधार नहीं दिखता। इसका कारण यह है कि शरीर में संकुचन की प्रवृत्ति विकसित हो चुकी होती है।
समस्या का समाधान: संकुचन की प्रवृत्ति को समाप्त करना
यदि संकुचन की प्रवृत्ति समाप्त कर दी जाए, तो कब्ज़ जैसी समस्या का समाधान संभव है। यह बात अनेक प्रयोगों और अनुभवों से सिद्ध हुई है। इस समाधान में एक योग क्रिया है जिसे ‘गुदा संकुचन’ के नाम से जाना जाता है।
हालांकि, यह सवाल उठ सकता है कि गुदा में संकुचन की आदत वाले व्यक्ति को गुदा संकुचन अभ्यास से भला क्या लाभ होगा? समस्या तो और बढ़नी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।
गुदा संकुचन का उद्देश्य संकुचन को बढ़ाना नहीं है, बल्कि संकुचन के माध्यम से शिथिलता को बढ़ाना है। यह प्रक्रिया इसलिए की जाती है ताकि व्यक्ति संकुचन के बाद शिथिलता की स्थिति का अनुभव कर सके। योग में, किसी भी शारीरिक अभ्यास में खिंचाव इसलिए नहीं करवाया जाता कि मांसपेशियों को खिंचाव की आदत पड़ जाए। खिंचाव का अभ्यास इसलिए कराया जाता है ताकि खिंचाव के बाद शरीर को आराम की स्थिति में लाया जा सके।
गुदा संकुचन के माध्यम से गुदा द्वार में शिथिलता प्रदान की जाती है। यही शिथिलता गुदा द्वार से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान करती है। इसके साथ-साथ संकुचन की आदत से मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले खिंचाव की प्रवृत्ति भी समाप्त हो जाती है। मस्तिष्क को गहन शांति प्राप्त होती है, जिससे गहरी और सुकून भरी नींद आती है।
गहरी नींद के कारण आंतों को और अधिक शिथिलता प्राप्त होती है। अंततः यही शिथिलता और विश्राम केवल आंतों को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जा से भर देता है।
मूलबंध का महत्व: योगशास्त्र में ‘मूलबंध’, जो कि गुदा द्वार के संकुचन की एक प्रभावी क्रिया है, का अभ्यास करवाया जाता है। इस अभ्यास से गुदा द्वार के संकुचन के माध्यम से शिथिलता लाई जाती है, जिससे आंतों में शिथिलता की अनुभूति होती है। यह क्रिया न केवल कब्ज़ का समाधान करती है, बल्कि सम्पूर्ण शरीर और मस्तिष्क को पुनः ऊर्जा से भर देती है।
गुदा संकुचन एक प्रभावी योग अभ्यास है, जो कब्ज़ जैसी समस्या का समाधान कर सकता है। यह अभ्यास संकुचन के बाद शिथिलता लाने पर केंद्रित है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है।
मूलबंध की विधि: मूलबंध गुदा द्वार के संकुचन का अभ्यास है, जिसे सही तरीके से करने से कब्ज़ और अन्य संबंधित समस्याओं में राहत मिलती है। इसे करने की विधि निम्नलिखित है:
1. स्थान का चयन करें: एक शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें। पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठना सबसे उपयुक्त होता है। यदि इन आसनों में बैठना संभव न हो, तो सामान्य स्थिति में बैठ सकते हैं। अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और पूरे शरीर को आरामदायक स्थिति में रखें। आँखें बंद कर लें और कुछ गहरी सांसें लें।
2. गुदा द्वार का संकुचन करें: धीरे-धीरे अपने गुदा द्वार को अंदर की ओर संकुचित करें, जैसे कि आप मल को रोकने की कोशिश कर रहे हों। इस स्थिति को 5-10 सेकंड तक बनाए रखें। उसके बाद सामान्य स्थिति में लौटें ।
3. गुदा द्वार में शिथिलता करें: अब धीरे-धीरे गुदा द्वार को ढीला छोड़ें और सामान्य स्थिति में आ जाएं। ध्यान दें इसी ढीलेपन को मस्तिष्क तक अनुभव करना है । यही शिथिलता मस्तिष्क में विचारशून्यता का अनुभव करवाती है । यही विचारशून्यता के अनुभव की अवधि बढ़ाने पर न केवल गुदा द्वार की समस्या का समाधान होता है बल्कि संकुचन की वृत्ति ही समाप्त होने लगती है । पुनः संकुचित करके कुछ समय तह रोकें और पुन शिथिल करें , ध्यान दें संकुचन उद्देश्य नहीं है संकुचन की क्रिया सिर्फ़ इसलिए किया जा रहा है कि शिथिलता का अधिक से अधिक समय तह अनुभव किया जा सके ।
कुछ महीनों के अभ्यास के बाद इस अभ्यास में साँसों का और फिर उसके बाद ध्यान का समावेश किसी अभ्यस्त और अनुभवी गुरु के संरक्षण में करना चाहिए ।
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