धारण (कुंभक), धारणा और धैर्य: रोगों का नाश
धारण: घड़ा जल को धारण (कुंभक) करता है, फेफड़ा श्वास को धारण करता है। प्रत्येक जीव अपनी क्षमता के अनुरूप एक निश्चित मात्रा में साँसों को धारण करता है और उचित रूप से उस धारण की गई वस्तु (ऑक्सीजन) को कुछ क्षणों के लिए रोक लेता है। प्राणायाम के विज्ञान में इस पूरी प्रक्रिया को कुंभक कहा जाता है।
कुंभक शब्द ‘कुंभ’ अर्थात् ‘घड़ा’ से लिया गया है, जिसमें जल को धारण एवं संचित करने की क्षमता होती है। उसी प्रकार, फेफड़ों में भी श्वास को धारण करने और अवशोषित करने की क्षमता विद्यमान होती है।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि कुंभक एक स्वाभाविक क्रिया होती है। प्रत्येक जीव में पूरक (श्वास लेना) और रेचन (श्वास छोड़ना) के अंत में कुंभक की प्रक्रिया स्वतः घटित होती है, भले ही वह क्षणभर के लिए ही क्यों न हो।
किंतु जब किसी बाह्य अथवा मानसिक कारण से इस धारण करने की शक्ति में कमी आने लगती है और इसका दुष्प्रभाव शरीर एवं मस्तिष्क पर पड़ने लगता है, तब प्राणायाम शास्त्र में इसी कुंभक की प्रक्रिया को ऐच्छिक रूप से प्रकृति के अनुसार बढ़ाने और घटाने का अभ्यास कराया जाता है।
धारणा : जब किसी व्यक्ति को फेफड़ों में श्वास धारण करने की क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता होती है, तो उसके लिए एक मानसिक धारणा (Visualization) विकसित की जाती है। यद्यपि सभी अंगों की अपनी एक स्वाभाविक धारणा होती है और वे अपने स्वभाव के अनुरूप कार्य करते हैं।
धारणा का मूल अर्थ यहाँ स्वभाव से है। जब किसी व्यक्ति के स्वभाव में कमी या क्षय दिखता है, तो उसमें आध्यात्मिक रूप से धारण विकसित करने के लिए मानसिक धारणा का सहारा लिया जाता है। इससे न केवल फेफड़ों में, बल्कि मस्तिष्क में भी उस कुंभक अर्थात् धारण करने की शक्ति विकसित हो जाती है।
प्राणायाम में इसी प्रक्रिया के माध्यम से शरीर में रक्त संचार और ऊर्जा का प्रवाह नियंत्रित होता है, जिससे मस्तिष्क तक प्राण ऊर्जा का समुचित प्रसार संभव हो पाता है।
यदि गहरे स्तर पर देखा जाए, तो सूक्ष्म से सूक्ष्म कोशिकाओं और तंत्रिका तंत्र में भी धारण करने की क्षमता छिपी होती है। जैसे –
• आमाशय (Stomach) में भोजन को धारण करने की धारणा होती है।
• आँतों (Intestines) में मल को धारण करने की धारणा होती है।
• मूत्राशय (Bladder) में मूत्र को धारण करने की धारणा होती है।
• कोशिकाएँ (Cells) भी ऊर्जा को धारण करने की धारणा विद्यमान होती है ।
यदि गहराई से देखा जाए, तो धारण और धारणा के बीच गहरा संबंध है, और इन्हीं अवधारणाओं के आधार पर आध्यात्मिक ऋषियों और गुरुओं ने प्राणायाम की विधियों को विकसित किया। इसी कारण, प्राणायाम के अभ्यास से केवल फेफड़ों में कुंभक की शक्ति विकसित नहीं होती, बल्कि शरीर के अन्य अंगों में भी धारण करने की क्षमता का विकास होता है।
कुंभक के प्रकार
1. अंतर कुंभक – जब श्वास को अंदर लेकर रोका जाता है। इसे पूरक कुंभक भी कहा जाता है।
2. बाह्य कुंभक – जब श्वास बाहर छोड़ने के बाद उसे रोककर रखा जाता है। इसे रेचन कुंभक कहा जाता है।
स्वभाव और कुंभक : आध्यात्मिक दृष्टि से यह देखा गया है कि जिन लोगों का स्वभाव गंभीर होता है और जिनके विचारों में अतिरेक नहीं होता, उनमें कुंभक की यह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से अधिक होती है। अर्थात, जो व्यक्ति भीतर से स्थिर और शांत होते हैं, उनकी साँसों को धारण करने की क्षमता भी अधिक होती है।
ऋषियों ने इस आध्यात्मिक रहस्य को पहचानते हुए ऐच्छिक रूप से कुंभक की प्रक्रिया विकसित की। इसके अभ्यास से स्वाभाविक रूप से गहरी शांति का अनुभव होने लगता है, जिससे मन और शरीर पर गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
हठयोग में कुंभक का अभ्यास अत्यधिक बलपूर्वक कराया जाता है, जिसमें व्यक्ति को अधिक समय तक श्वास रोकने के लिए प्रेरित किया जाता है। किंतु राजयोग और आध्यात्मिक योग में स्वभाव और आत्मिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए कुंभक के अभ्यास पर जोर दिया जाता है।
बलपूर्वक किए गए कुंभक अभ्यास में ज्ञान और तर्क का अभाव देखा जाता है, जिससे शरीर के विभिन्न अंगों पर अनावश्यक तनाव उत्पन्न हो सकता है। इसके विपरीत, जब कुंभक को समझदारी और सूक्ष्मता से किया जाता है, तो यह सहज रूप से शरीर और मन को संतुलित कर देता है।
धीरे-धीरे अभ्यास से शरीर रोगों से मुक्त होने लगता है, और स्वभाव की चंचलता गंभीरता में परिवर्तित हो जाती है।
कुंभक और मानसिक स्थिरता: कुंभक केवल फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह मस्तिष्क और मन को भी स्थिर करने का एक माध्यम है। जब श्वास को कुछ क्षणों के लिए रोका जाता है, तो मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर संतुलित होते हैं, जिससे तनाव और चिंता का स्तर कम होने लगता है।
क्या जो व्यक्ति अधिक धैर्यवान होते हैं, उनमें कुंभक की स्वाभाविक प्रवृत्ति अधिक होती है?
हाँ! आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो कुंभक का अभ्यास प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का निर्णय लेने वाला भाग) को सक्रिय करता है, जिससे व्यक्ति की संयमशीलता और सहनशक्ति में वृद्धि होती है। यही कारण है कि योगियों और साधकों में गहरी मानसिक स्थिरता और आत्मनियंत्रण देखा जाता है।
कुंभक और आधुनिक विज्ञान: हाल ही में हुई वैज्ञानिक खोजों से यह सिद्ध हुआ है कि श्वास नियंत्रण तकनीकों (Breath Retention Techniques) का सीधा प्रभाव शरीर की ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम (स्वायत्त तंत्रिका तंत्र) पर पड़ता है।
• कुंभक पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को सक्रिय करता है, जिससे शरीर में गहरी शांति और विश्राम उत्पन्न होता है। किंतु यदि आवश्यकता से अधिक कुंभक किया जाता है तब उच्च रक्तचाप बढ़ता है । और मानसिक रोगों के बढ़ने की संभावनाएं बढ़ सकती अहीन । इसलिए यह प्रक्रिया किसी के निरीक्षण में ही की जानी चाहिए ।
• नियमित अभ्यास से रक्त शोधन होता, अनिद्रा (Insomnia) में सुधार होता है, और शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Oxidative Stress) कम होता है।
क्या आधुनिक विज्ञान कुंभक की पुष्टि करता है? हाँ! वैज्ञानिक शोधों में यह पाया गया है कि गहरे श्वसन अभ्यासों से शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बेहतर होता है, जिससे कोशिकाओं की कार्यक्षमता बढ़ती है और शरीर अधिक ऊर्जावान महसूस करता है।
धैर्य और कुंभक का व्यावहारिक अभ्यास : मेरे आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर, कुंभक का प्राथमिक उद्देश्य स्वभाव को गंभीर और स्थिर बनाना है। जब स्वभाव में शांति और स्थिरता आ जाती है, तो शरीर और मस्तिष्क के रोग स्वतः समाप्त होने लगते हैं।
कुंभक का अभ्यास मस्तिष्क की सूक्ष्म कोशिकाओं में वह स्वाभाविक क्षमता जागृत करता है, जिससे व्यक्ति का स्वभाव गंभीर और स्थिर हो जाता है।
कुंभक केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन भी है। यदि कोई व्यक्ति धैर्य विकसित करना चाहता है, तो उसे कुंभक के निम्नलिखित व्यावहारिक अभ्यास अपनाने चाहिए –
विधि: सामान्य श्वास की गहराई धीरे-धीरे बढ़ायें । पूरक (श्वास लेना) और रेचन (श्वास छोड़ना) के बाद 2-3 सेकंड का कुंभक करें। इसे प्रतिदिन 5-11 मिनट तक अपनी क्षमता के अनुरूप ही करें। कुंभक अर्थात् स्थिरता । उस श्वास के कुंभक को करने के बाद स्थिरता की अनुभूति ही सबसे अधिक आवश्यक है । यदि इस स्थिरता और शांति की अनुभूति नहीं हुई तो श्वास का कुंभक व्यर्थ है । उस श्वास का अवशोषित होना संभव नहीं है ।
मानसिक धारणा (Visualization) का उपयोग करें—जैसे जैसे श्वास के भीतर ऊर्जा का प्रवाह रुकता है और उस रुकाव में स्थिरता और शांति का अनुभव होता है वैसे वैसे एक मानसिक अवधारणा विकसित होती है । मन स्वतः ही अधिक स्थिर और विचारहीन रखने का अभ्यास करने लगता है । धीरे धीरे उच्च स्तर पर स्वभाव में स्थिरता और धैर्य की वृद्धि को स्वयं में अनुभव होने लगता है ।
क्या कुंभक केवल योगियों के लिए है? नहीं! यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन में शामिल कर सकता है। जो लोग ध्यान, मानसिक संतुलन और आत्मनियंत्रण चाहते हैं, वे कुंभक को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकते हैं।
Copyright - by Yogi Anoop Academy