यदि मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जाय तो शरीर के किसी भी अंग विशेष को स्वस्थ किया जा सकता है । किंतु हम हैं कि शरीर को पहलवान बनाने के चक्कर में पड़े हैं । शरीर का अभ्यास बहुत आवश्यक है किंतु उससे कहीं अधिक मस्तिष्क का अभ्यास, क्योंकि हम चौबीस घंटे मानसिक क्रियाओं में उलझे हैं, ये उलझन देह के विभिन्न अंगों में चोट पहुँचा रही है । और हम हैं कि शरीर की माँसपेशियों के पीछे पड़े हैं ।
आधुनिक विज्ञान है कि वो अंगों पर ज़ोर देता है बिना कोई दवा के मेरे अनुसार यदि मेडिकल science अंगों के बजाय , मस्तिष्क में कुछ हीलिंग जैसा कर सके तो बहुत अच्छा हो सकता है । किंतु बिना दवा के । आज सबसे दुखद है कि आधुनिक विज्ञान की सबसे बड़ी समस्या है कि वो किसी भी समस्या का इलाज मस्तिष्क को सुलाकर करना चाहता है । । बस मस्तिष्क को सुला दो । किंतु दवा से सुलाने का अर्थ है कि मस्तिष्क की अपनी क्षमता को बर्बाद कर देना ।
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