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काल्पनिक और अनुशासित मस्तिष्क

3 years ago By Yogi Anoop

काल्पनिक और अनुशासित मस्तिष्क का अनोखा मिश्रण 


    किसी भी एक व्यक्ति में इमैजिनेरी और  disciplined ब्रेन का एक साथ होना बहुत ही दुर्लभ होता है ।  अधिकतर काल्पनिक मस्तिष्क वाले लोगों में अनुशासन पक्ष बहुत कमजोर होता, चूँकि अनुशासन मन की गति को नियमित तथा व्यावहारिक बनाता है इसलिए काल्पनिक मस्तिष्क को वह पसंद नहीं आता है । काल्पनिक मस्तिष्क बिना व्यावहारिक कर्म किए, मनोनिर्मित कल्पनाओं से ही सुख प्राप्त कर लेना चाहता है । इस प्रकार का मन ही लोकों की कल्पनाएँ भी करता है और अपेक्षाओं का धीरे धीरे भंडार भारत जाता है । यहाँ  तक कि इस प्रकार के लोग ही हीलिंग एवं भक्ति पूजा इत्यादि में अधिक जाते हुए पाए जाते हैं । वह इसलिए कि इन सभी मार्गों में व्यावहारिकता और अनुशासन सिखाने के बजाय अप्रत्यक्ष रूप से निर्भरता सिखाया जाता है ।  

इस प्रकार के अति काल्पनिक मस्तिष्क चाहता हैं कि अनुशासित हो जाए किंतु हो नहीं पाते हैं क्योंकि काल्पनिक मस्तिष्क उन्हें होने नहीं देता है । यदि इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण को देखें तो तो दिनचर्या में कल्पना की अति से मस्तिष्क थक जाता है, उस थकान को मिटाने के लिए या तो उसे स्वाभाविक रूप से दिन में कई बार नींद आती है  और या तो उसे बार बार भोजन करना पड़ता है । यदि ये दोनों घटनाओं पर नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है तब उसके स्वभाव में बहुत तेज़ी से अस्थिरता दिखने लगती है । जैसे मूड स्विंग , अवसाद , ऐंज़ाइयटी , इरिटेशन , अनावश्यक क्रोध का आना इत्यादि । 

इसलिए इमैजिनेरी ब्रेन को नियंत्रित करने के लिए व्यावहारिकता व अनुशासन में डालना बहुत ही आवश्यक है । यह सत्य है कि इमैजिनेशन से जो बहुत थोड़े समय में ख़ुशी मिलती है उतनी शीघ्रता से अनुशासन और व्यवहार में रहकर नहीं मिल पाती है किंतु जब स्थिरता मिलना प्रारम्भ होता है तब वह मन को बहुत शांति देता है और मन को मजबूर करके मस्तिष्क को आनंदित करता है । 

अनुशासन और व्यवहार में इतनी शक्ति होती है कि मन, मस्तिष्क और शरीर में  होर्मोनल सिक्रीशन को बहुत संतुलित ढंग से उपयोग में लाता है , और परिणाम यह होता है कि मानसिक दुःख नहीं होने पाता है । दुःख आने के बावजूद भी दुःख का बहुत अच्छी तरह से प्रबंधन स्वतः ही कर लेता है । दुःख में घबराता नहीं है ।  


इस प्रकार के लोगों को क्या करना चाहिए 


चूँकि जितने भी अति काल्पनिक मस्तिष्क के लोग होते हैं उनका दिन, रात में शुरू होता है अर्थात् रात होते ही उनका मन मस्तिष्क कल्पनाओं की ऊँची से ऊँची उड़ाने लेना प्रारम्भ कर देता है । ध्यान दें जब कल्पनाओं में तेही आती है तब उन्हें स्क्रीन देखने का मन करता है । अर्थात् मस्तिष्क के अंदर गति हो रही है और इनकी आँखों को और मुँह को बाहर भी गति दिखनी चाहिए । इसीलिए ऐसे लोग बहुत स्कोर TV movie इत्यादि देखते है , और इसीलिए ऐसे लोग रात में बहुत भोजन पर ध्यान देते हैं । स्वाभाविक है कि रात में यह सब करने पर देर रात जागना पदता है । इसलिए उन्हें ये सभी नियम स्वयं के ऊपर लागू करना चाहिए । 


रात और सोने के पहले -

  • रात में अधिक से अधिक 8 बजे तक भोजन हो जाना चाहिए , इसके बाद पानी के अतिरिक्त कुछ लेना चाहिए ।

  • रात में प्रोटीन की मात्रा पर अधिक ध्यान देना चाहिए, मीठा खाने का मन करे तो प्राणायाम अवश्य करें ।  

  • रात में भोजन के बाद स्क्रीन को न देखें । 

  • भोजन के 30 मिनट के बाद पंजों पर कम से कम 10 मिनट टहलना चाहिए ।

  • सोने के पहले किताब को पढ़ने की आदत डालनी चाहिए । 

  • बिस्तर पर प्राणायाम करते करते सोना चाहिए ।


सुबह के समय -

  • समय से उठकर 2 ग्लास पानी पीकर 20 मिनट पंजो पर टहलना चाहिए । 

  • मल विसर्जित करने का दबाव हो या नहीं , डोनो अवस्थाओं में toilet शीट पर अवश्य बैठें ।

  • योग प्राणायाम अवश्य करें । प्राणायाम कम से कम 30 मिनट करें । 


ध्यान दें कितनी भी मानसिक हलचल हो , शारीरिक समस्या आए किंतु अपने दैनिक क्रियाओं में अनुशासन को न छोड़ें । यदि अनुशासन नहीं छोड़ते हैं तो काल्पनिक मस्तिष्क को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है । मूड स्विंग डिप्रेशन इत्यादि मानसिक हलचलों से बचा जा सकता है । 



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