समाज में ऐसी सामान्य अवधारणा है कि वायु रोग और क़ब्ज़ जैसी समस्या का मूल कारण भोजन में दोष का होना है , किंतु मैं बता दूँ ये तो सिर्फ़ 20 फ़ीसदी ही कारण है ,लगभग 80 फ़ीसदी कारण कुछ अन्य ही है जिस पर गहराई से चर्चा होनी चाहिए ।
मैंने अपने प्रयोग में पाया कि उन 80 फ़ीसदी लोगों में सामान्यतः intestinal गैस्ट्रिक उसे ही अधिक दिखती है जिनकी अतड़ियों में अकड़न व खिंचाव अधिक देखा जाता है । intestines में अकड़न सबसे अधिक दो कारणों से देखी जाती है -
पहला -पेट को अंदर खींचे रहना ।
दूसरा -मानसिक तनाव व डिप्रेशन ।
पहला -
कुछ लोग अपने फ़िगर को बनाए रखने के लिए, पेट न दिखे , हमेशा पेट को अंदर की ओर खींचे रहते हैं । जैसे लड़कियाँ व वे लोग जो बहुत फ़िगर conscious होते हैं बहुत जिम जाते हैं इत्यादि । मिरर के सामने चेहरे से अधिक साइड से फ़्लैट ऐब्डमेन को देखते रहते हैं । वो भी अंदर खींच करके ।
ऐसे लोगों को दिमाग़ में पेट को अंदर खींचे रहने की आदत हमेशा बन जाती है । और इस प्रकार की खींच से मस्तिष्क में हमेशा खिंचाव बना रहने लगता है । चूँकि पूरा दिन मस्तिष्क की पूरी ऊर्जा पेट को अंदर खींचने में लगी रहती है इसीलिए सिर और पेट में भारीपन का रहना एक सामान्य बात हो जाती है । साथ साथ न ठीक होने वाली क़ब्ज़ की बीमारी भी हो जाती है ।
प्रयोग के दौरान Profesional लोगों में क़ब्जियत का मूल कारण पेट का अधिक समय तक पिचकाए रहना ही था । इसके बावजूद कि उनके भोजन की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी थी उनमें क़ब्जियत देखी गयी । । ऐसे लोगों को प्रारम्भिक दौर में कुछ वर्षों तक उस क़ब्ज़ का प्रभाव स्वभाव व देह पर नहीं पड़ता, उस क़ब्ज़ से बहुत असंतुष्टि नहीं होती है । वह इसलिए कि उसे बाह्य जगत में सफलता मिलती रहती है और उस सफलता का नशा मन को शरीर के क़ब्ज़ की तरफ़ नहीं जाने देता । सफलता की संतुष्टि ही बहुत अधिक होती है । किंतु ध्यान दें, सफलता किसी भी व्यक्ति में हमेशा बराबर नहीं बनी रह सकती है । धीरे धीरे शरीर में जब क़ब्ज़ का दुष्प्रभाव अन्य अंगों पर भी जब पड़ने लगता है तब उसकी समस्या बढ़नी शुरू होती है ।
कुछ लोग तो जिसमें खिलाड़ी और जिम जाने वाले लोगों को भी हमने देखा है जिनमें कॉन्स्टिपेशन और गैस्ट्रिक अधिक देखा गया । यहाँ तक कि बहुत सारे लोग जब जिम जाना बंद कर देते है । तो उनके अंदर बहुत बेढंगे से मोटापा बढ़ने लगता है । यदि उनके अंदर कॉन्स्टिपेशन न हो तो मोटापा बढ़ने का सवाल ही नहीं । मोटापा तो तब और बढ़ता है जब आँतों व पूरे ऐब्डॉमिनल area को हमेशा अंदर खींचने की टेंडेन्सी बना लेते हैं ।
कहने का मूल अर्थ है चाहे जितनी शारीरिक अभ्यास और योग कर लो आपको ये दोनों समस्याएँ रहेगी ही रहेंगी यदि पेट को हमेशा अंदर खींचे रहोगे तो । यहाँ तक की नाभि के समस्या से ग्रसित लोगों में बहुत सारे बीमार लोग पेट को सिकोड़ते हुए पाए गए ।
दूसरा प्रमुख कारण है मानसिक तनाव व डिप्रेशन -
क्रोध, डिप्रेशन व भय के समय मन मस्तिष्क पेट को स्वतः ही अंदर की तरफ़ खींच लेता है । प्रारम्भिक समय में किसी भी तनाव वाले व्यक्ति को पेट में खिंचाव महशूस नहीं होता है किंतु कुछ वर्षों तक मानसिक अस्थिरता निरंतर बने रहने पर पेट में खिंचाव लगातार बना रहता है जिससे उसको पेट से सम्बंधित समस्यायें महसूस होने लगती हैं । यद्यपि उसके समाधान के रूप में वह बाह्य चिकित्सा का सहयोग लेता है किंतु समस्या का मूल कारण तनाव है , उसके प्रबंधन पर ध्यान दिया जाना चाहिए न किसी बाह्य समाधान की तरफ़ ।
यह पर कुछ समाधान पर चर्चाएँ की जा रही हैं -
1-सर्वप्रथम -कुर्सी आसन
विवरण आपको विडीओ में बताया गया है । दोनों पैरों के मध्य इतनी दूरी बनाना चाहिए कि घुटनो पर तनाव न आए । घुटने और ऐंकल व टखने बिल्कुल 90 डिग्री पर होना चाहिए । उसके बाद शरीर शरीर को धीरे धीरे नीचे की ओर और धीरे धीरे ऊपर की ओर लेते जाना है । ऐसा करने पर जाँघों की मांसपेशियों में तनाव आना चाहिए ।
इस क्रिया को करते समय चेरा और इंद्रियाँ ढीली और शांत होनी चाहिए , उसमें किसी भी प्रकार का अनावश्यक तनाव नहीं दिखना चाहिए ।इस क्रिया को 3 मिनट तक करना है किंतु किसी अनुभवी गुरु के सारांशों में ही होना चाहिए ।
2- द्वितीय - Thigh Muscles Pumping-
मैं जाँघों की मांसपेशियों को दूसरा पेट कहता हूँ, इसकी पम्पिंग की सहायता से पेट के अंदर हुए खिंचाव व ऐंठन को ढीला किया जा सकता है ।
जाँघ की मांसपेशियों की पम्पिंग या थाई मसल्ज़ पम्पिंग अर्थात् जाँघ की मांसपेशियों को रिलैक्स करना । इस पम्पिंग की क्रिया में जाँघों की मांसपेशियों की पम्पिंग के माध्यम से ऐब्डॉमिनल area या उदर की मांसपेशियों को ढीला करने का प्रयास किया जाता है । यदि इसका अभ्यास सोने के पूर्व किया जाए और सुबह में किया जाए तो क़ब्जियत दूर हो सकती है ।
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