जब आप फ़ास्ट स्पीकर होते हैं तब इसका सीधा सा अर्थ है कि आपने उसे मेमोराइज़ किया हुआ है । कुछ ऐसे शब्दों को अंदर रख लिया जिसको जल्दी से जल्दी बाहर निकालना चाहते हैं अथवा कुछ ऐसे बातें जिनको बहुत जल्दी से अंदर भरना चाहते हैं ।
ध्यान दें स्मृति में शब्दों को जल्दी जल्दी में ही स्टोर किया जाता है । यह मेमोराइज़ेशन की प्रक्रिया किसी भी धार्मिक व्यक्तियों व बच्चों में देखने को मिल जायेगी ।
फ़ास्ट स्पीकर वि फ़ास्ट लिसनर उस मेमोराइज़ेशन के दायरे से बाहर नहीं हो सकते हैं । जैसे ही धीरे धीरे बोलेंगे वैसे ही उस मेमोराइज़ेशन के दायरे से बाहर हो जाएँगे । आपके के शब्द चुने हुए हैं कि उसे कहाँ कहाँ रखना है, क्योंकि आपके अंदर वह उसी जगह पर फीड है । इसीलिए ये सभी लोगों को जल्दी जल्दी बोलना पड़ता है । उनको समझने से मतलब नहीं होता है । वे समझकर नहीं बोलते हैं । वे अपनी मेमोरी का इस्तेमाल बस करते हैं । वे मेमोरी को एक ऐसी मशीन बना देते हैं जिसका केवल शब्दों को फेकने का कार्य है । इससे चरित्र का निर्माण होने के बजाय पूरा चरित्र ही समाप्त हो जाता है । इसीलिए यदि देखो तो जितने भी इस प्रकार के स्पीकर होते हैं उनमें सुसाइडल टेंडेंसी बहुत अधिक देखने को मिलती है ।
किंतु वह व्यक्ति जिसका एप्रोच बहुत ही व्यावहारिक है वह जल्दी जल्दी बोल ही नहीं सकता है । उसे तो स्वयं को समझते और समझाते हुए बोलना पड़ता है , ऐसे लोगों का बॉडी जेस्चर में बहुत अधिक गंभीरता होती है ।
यहाँ तक कि मुझे अपने शिष्यों के बॉडी जेस्चर से ही 50 प्रतिशत जानकारी हो जाती है, बाक़ी उसके इंद्रियों के जेस्चर (सेंसुअल जेस्चर) से तो पता चल ही जाता है ।
सिर्फ़ शब्दों को कानों के माध्यम से भरना और शब्दों को मुँह से फेकना ही मस्तिष्क का कार्य नहीं है । यह भारतीय सभ्यता का हिस्सा नहीं था । यह सत्य है कि बच्चों की शाब्दिक क्षमता की वृद्धि के लिए मेमोरी को बढ़ाया जाता था किंतु उसकी भी एक उम्र होती थी । उसके बाद एनायलिस पर ध्यान दिया जाता था ।
ध्यान दें जो व्यक्ति दिन भर सिर्फ़ शब्दों से ही खेलता पाया जाएगा वह भला व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान कहाँ से दे पाएगा । इसीलिए जिसका व्यावहारिक पक्ष बहुत मज़बूत होता है उसके शब्दों में बहुत भारीपन होता है । वे बहुत तेज़ी से न तो बोल सकते हैं और न ही तेज़ी से सुन सकते हैं , और न ही तेज़ी से खा सकते हैं और न ही तेज़ी साँसों को लेते हैं ।
तेज़ी से बोलने वालों के साँसे बच्चों से भी अधिक तेज़ी से चलती हैं जो उनके हृदय की क्षमता को भविष्य में कमजोर कर देती हैं ।
तेज़ी से बोलने वालों का डायफ्रैग्म का तनाव में आ जाना बहुत आसान होता है । उनकी संसों में बहुत अधिक जर्क होता है ।
तेज़ी से बोलने वाले लोग जल्दी बाज़ी में भोजन भी करते हुए पाए जाते हैं -ऐसे लोगों की कब्ज कभी भी ठीक नहीं हो सकती ।
ऐसे लोगों को विसुअल एडिक्शन होता है , ये जब तक मार धाड़ वाली वीडियो नहीं देख लेते तब तक इनको चैन नहीं मिलता है ।
ऐसे लोग इंद्रियों को थका कर नींद में जाते हैं , जब कि धीरे धीरे कार्य को करने वाले लोग इंद्रियों को शांत करके नींद में जाते हैं । अपने आप को थका कर नींद में जाने का अर्थ है जानवरों की नींद । रात में वीडियो को देखकर नींद में जाने का अर्थ है रोग ।
ऐसे स्वभाव के लोगों का आत्मसंतोष सर्वाधिक कम होता है , इसीलिए ऐसे लोगों को सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन अधिक होता है । इन्हें ही रात में सोने के पहले सेक्स करने की मजबूरी होती है । सेक्स को सोने की दावा समझते हैं ऐसे लोग । वह इसलिए क्योंकि सेक्स के बाद ही पाँचों इंद्रियाँ शिथिल हो पाती हैं । इन्हें तो पाँचों इंद्रियों को तनाव देने की टेंडेंसी होती है , रात तक हालात ऐसे बन जाते हैं कि वे सभी इंद्रियाँ तनाव की चरम अवस्था पर होती हैं ।उन्हें केवल सेक्स , या गंदे सेक्स की बुरी लत भी लग जाती है ।
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