जीवन की गुणवत्ता दो बातों पर निर्भर करती है , और मैं बतला दूँ कि उन दोनों बातों में निर्लिप्तता दिखनी चाहिए । यदि ये डिटैच्मेंट की अवस्था इन दोनों अवस्थाओं में प्राप्त कर ली जाय तो समझो जीवन आनंदित और अजेय हो गया ।
जीवन की पहली गुणवत्ता गहरी निद्रा , जिसमें संसार को पूरी तरह से भुलाने का मन करता है , मन स्वयं ही मन को समाप्त करने की चाहना रखता है । अपनी देह को जो उसके नियंत्रण में है उसको कुछ घंटों के लिए समाप्त कर देना चाहता है ।
अपनी इंद्रियों को, खिड़कियों को बंद कर देना चाहता है , वह नहीं चाहता कि उस संसार से उसका नाता कुछ घंटों के लिए हो ।
आख़िर क्यों ? क्योंकि इस क्षणिक मृत्यु में मन अपने मस्तिष्क को पुनः ऊर्जावान कर देता है , और दिन में वह अपने शरीर में खुद होकर व्यतीत करता है ।
जीवन की दूसरी गुणवत्ता । जागृत अवस्था में अर्थात् दिन में उसी प्रकार मन निर्लिप्त रहे जैसे रात में मन था । ।।।।।
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