भारतीय परम्परा में फ़ास्टिंग अर्थात् व्रत का बहुत अधिक महत्व रहा है, जिसमें कम से कम 24 घंटे का हुआ करता था । व्रत के पीछे इस बात का महत्व था कि दो भोजन काल के मध्य में अधिक से अधिक अंतराल रखा जाय । इस अंतराल का तात्पर्य ये था कि आपके सभी महत्वपूर्ण अंगों को आराम मिल जाय और वो दूसरे अच्छे से कम करने के लिए तैयार हो जायँ ।
सभी व्यक्ति 24 घंटे का व्रत नहीं रख सकते इसलिए उन्हें ये सलाह दी जाती है कि वे रात में कम से कम 12 से 16 घंटे का फ़ास्टिंग करें जिससे उनके लिवर और आँतों की शक्ति बढ़ जाय ।
मई हमेशा से कहता आया हूँ कि अपने स्वभाव के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए इसी प्रकार से ये इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग भी है । प्रकृति 3 तरह की होती हैं जिसके वात पित्त और कफ़ होता है । इनमें क़फ़ प्रधान के व्यक्तियों को सबसे अधिक देर तक फ़ास्टिंग करनी चाहिए , अधिक समय तक भोजन में अवकास होना आवश्यक होता है जिससे उनकी लिवर की शक्ति बढ़ जाती है और उनके शरीर से कफ़ के निकलने की मात्रा बढ़ने लगती है ।अर्थात् कफ़ दोष कम या ख़त्म होने लगता है ।
वायु प्रकृति के लोगों को थोड़ा कम अंतराल रखना चाहिए , भोजन का अधिक अंतराल रखने पर उनको मूड स्विंग होने लगता है , उनको डिप्रेशन होने की सम्भावनाएँ बढ़ सकती हैं और वायु रोग भीषण बढ़ सकता है इसलिए मेरे अपने अनुभव में उन्हें बहुत देरी या भोजन में बहुत अधिक गैप नहीं करना चाहिए ।
पित्त प्रधान व्यक्तियों को भोजन में सबसे कम अंतराल रखना चाहिए क्योंकि इनको क्रोध और पेट में जलन के बढ़ने का बहुत अधिक ख़तरा होता है ।
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