मस्तिष्क में असंख्य प्रकार की कोशिकाएँ हैं, इनमें भिन्न भिन्न कार्य करने वाली कुछ कोशिकाओं का अपना एक विशेष समूह होता है, और ये समूह किसी शरीर अंग विशेष को प्रभावित करता है तथा साथ उससे प्रभावित होते भी हैं ।
इन सभी कोशिकाओं के समूहों को भोजन विशेष रूप से पाँच ज्ञान इंद्रियों द्वारा मिलते हैं ।
जैसे आँखों का भोजन रूप रंग और आकार है । इसी के माध्यम से वह काल्पनिक उड़ान भरता है । और मस्तिष्क के कई हिस्सों को जो आँखो से सम्बद्ध है क्रियान्वित करता तथा संतुष्ट होता है । इसी के माध्यम से उसमें सबसे अधिक बैलन्सिंग का कॉन्फ़िडेन्स भी आता है ।
कान का भोजन ध्वनि है, इसमें केवल एक ही प्रकार की ध्वनि नहीं बल्कि अनेकों तरह की आती हैं जिसके माध्यम से मस्तिष्क शांत और संतुष्ट होता है । जिसमें राग अलाप इत्यादि ऐसी ध्वनियाँ हैं जो मस्तिष्क को न मिले तो वह शांत नहीं हो सकता है । मस्तिष्क के विकास के लिए ध्वनि का होना बहुत आवश्यक होता है ।
इसी प्रकार नासिका का भोजन सुगंध और स्वाँस है । इसी ऑक्सिजन के माध्यम से मस्तिष्क ही नहीं सम्पूर्ण देह में समस्त अंगो को सर्वाधिक खाने की आपूर्ति करता है ।
केवल भोजन सुगंध मात्र से मस्तिष्क भूख पैदा कर देता है । योगियों और ऋषियों ने इस पर बहुत वैज्ञानिक रूप से कार्य किया है । सामान्यतः स्वाँस को भोजन के रूप में कोई भी नहीं देखता है , जब कि यह सबसे बड़ा भोजन है । यदि 2 सेकंड के लिए स्वाँस न मिले तो देखो क्या होता है । स्वाँस की उचित मात्रा में शरीर और मस्तिष्क के अंदर आपूर्ति करके मस्तिष्क और देह के अंदर कई अंगो को रोगों से बचाया भी जा सकता है ।
त्वचा का भोजन है स्पर्श है जो मस्तिष्क की शांति के लिए सर्वाधिक आवश्यक है । यदि इसकी आपूर्ति में बाधा रहती है तो व्यक्ति में सेक्शूअल फ़्रस्ट्रेशन सबसे अधिक होती है । इसलिए ध्यान के माध्यम से , मालिश के माध्यम से , सेक्स के माध्यम से इसकी आपूर्ति की जाती है । स्वयं के शरीर की मांसपेशियों को जितना अनुभव करते जाते हैं उतना ही त्वचा शांत हो जाती है और मस्तिष्क को कुछ घंटो तक आराम मिल जाता है । यद्यपि गहरी निद्रा त्वचा का सबसे अच्छा भोजन माना जाता है ।
अंत में जिह्वा जिसका मूल भोजन खाना है । विशेष करके मनुष्य (जानवर के भोजन का आधार स्वाद नहीं है, भोजन उसकी आवश्यकता है) के भोजन का मूल आधार शरीर को चलाने से कही अधिक स्वाद होता है । सामान्य जन भोजन के अतिरिक्त अन्य किसी इंद्रिय के भोजन को महत्व नहीं देते हैं । वे अन्य सभी इंद्रियों को शांत करने के लिए सिर्फ़ भोजन ही करते हैं । इसीलिए मस्तिष्क के वे सभी हिस्से शांत और स्थिर नहीं हो पाते हैं ।
सामान्य जन का मूल आधार स्थूल भोजन अर्थात् स्वाद और कुछ पीना भर मात्र रहता है । और उसमें भी कुछ विशेष स्वाद पर ही निर्भरता होती है । जैसे मीठा या तीखा इत्यादि । मीठे में भी गुड़ से नहीं बल्कि रसगुल्ले से ही मन संतुष्ट होता है ।
ध्यान दें जब अन्य सभी इंद्रियों को उनके अनुरूप भोजन नहीं दिया जाता है तब जिह्वा ऐसे ऐसे भोजन की माँग करने लगती है जो नशीली होती हैं ।जिसमें स्वाद की आती होती है , जिससे मस्तिष्क में नशा पैदा कर दिया जाता है , इस नशे से अन्य इंद्रियों के भोजन की कमी को आसानी से भुलाया जा सकता है । वह नशीली पदार्थों से मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को सुला देते हैं ।
इसीलिए जिह्वा दिन भर मुँह में कुछ न कुछ भरने के लिए आपको मजबूर कर देती हैं जैसे पान हमेशा चबाते रहना , चिंगम मुँह में डोलाते रहना , तम्बाकू व सिगरेट इत्यादि में दिन भर व्यस्त रहना इत्यादि । रात में मीठा खाना ।
यद्यपि रोग भोजन से नहीं होता है बल्कि भोजन के स्वाद की निर्भरता से होता है । यदि वह अपने अनेक स्वाद ग्रंथियों को भी खाने की आपूर्ति करवाए तो सम्भव है कि रोग कम हो और मन को अधिक शांति मिले किंतु किसी एक स्वाद में पूरा जीवन निकाल देना कहीं की बुद्धिमानी नहीं है ।
ध्यान दें इतना विशाल मस्तिष्क , उसे किसी एक विशेष स्वाद तक ही सीमित कर देने से रोग नहीं तो भला और क्या होगा ।
सभी इंद्रियों को महत्व देना होगा, उन्हें उनके अनुरूप भोजन देने जा प्रयास किया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले वर्षों में मस्तिष्क से सम्बंधित ही नहीं दैहिक बीमारी में भी अनेको तरह से वृद्धि होगी ।
किसी ज्ञानी अनुभवी गुरु के संरक्षण में रहकर समझ पैदा करने का प्रयत्न करें जिससे जीवन के रहस्य को जाना जा सके , सिर्फ़ जिह्वा के किसी एक स्वाद पर ही निर्भरता न रहने दें ।
कुछ विशेष योग्य बातें जिनका अनुपालन करना आवश्यक है दिनचर्या में -
ऐसे भोजन ज़रूर किए जाने चाहिए जिसका स्वाद जिह्वा को अच्छा नहीं लगता । क्योंकि मन कुछ विशेष स्वाद का ऐडिक्ट हो जाता है , उसके लत को तोड़ देना ही मस्तिष्क के लिए बेहतर होता है ।
एक उम्र के बाद कसैले स्वाद वाले भोजन करना अनिवार्य होता है ।
आँखो को दृश्यों का भोजन उतना ही दें जिससे मस्तिष्क में अनावश्यक तनाव न बढ़े । आँखों का भोजन दृश्य है , इसलिए स्क्रीन टाइम हमेशा नियंत्रित होनी चाहिए ।
रात में सोने के 3 घंटे पहले तो स्क्रीन बिल्कुल भी नहीं देखना चाहिए । किताबें अवश्य पढ़ा जा सकता है ।
भोजन से ही तृप्ति नहीं बल्कि स्वाँस को भी शरीर के अंदर डालने का प्रयास करें । किसी भी प्रकार की सुगंध न होने के बावजूद भी मस्तिष्क कितनी गहरी शांति देता है ।
उस प्राणायाम का अभ्यास करें जिससे मस्तिष्क में ऊर्जा अधिक समय तक बनी रहे । और मन को अनावश्यक भोजन की तरफ़ बहुत आकर्षित न होने दे । ओवर ईटिंग न करने दे ।
ध्यान अवश्य करें , इससे मन के अंदर अनावश्यक विचारों का आवागमन बंद हो जाता है । और स्वयं की आत्म संतुष्टि में वृद्धि होती है । इससे मन अशांत होने से बचता है और शांत मन कभी भी इंद्रियों से ग़लत व्यवहार नहीं कर सकता है ।
टहलना प्रतिदिन का हिस्सा होना चाहिए , इससे मांसपेशियों का अभ्यास होता है जिससे मन मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है और मस्तिष्क को शांति मिलती है ।
गहरी नींद का भी अनुभव अतुलनीय है । यह तभी होगा जब सोने के पहले ध्यान व प्राणायाम का अभ्यास किया जाय ।
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