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हाइपर एसिडिटी का इलाज

2 years ago By Yogi Anoop

हाइपर एसिडिटी का कारण और योगिक इलाज  

 पाँच में से 2 तत्व जल एवं वायु जिनका अनुपात देह व मस्तिष्क में सर्वाधिक है । मनुष्य शरीर में 65 से 70 फ़ीसदी जल , मस्तिष्क में 85 से 90 फ़ीसदी और रक्त और फेफड़े में लगभग 80 -80 फ़ीसदी है । 

शरीर में अम्लीयता के बढ़ने के कई कारणों में से दो प्रमुख कारण देह में जल का कम व दूषित होना तथा CO2 की मात्रा की अधिक हो जाना । अधिकतर लोग कार्य में अधिक संलग्नता के कारण पानी पीना भूल जाते हैं और साथ साथ कई घंटों तक Air Condition Room में होने के कारण पानी पीने की आवश्यकता महसूश नहीं कर पाते हैं । 

दूसरा प्रमुख कारण में से शरीर के अंदर CO2 के बढ़ना होता है । इसके बढ़ने के कारण शरीर के अंदर रक्त में 80 फ़ीसदी पानी का अम्लीय होना प्रारम्भ होने लगता  है । ध्यान दें शरीर के उन उन हिस्सों में जिसमें पानी की सर्वाधिक मात्रा होती है जैसे मस्तिष्क, फेफड़ा लिवर ब्लैडर,आँत , हृदय व रक्त और में अत्यधिक अम्ल (acidity) का  दुष्प्रभाव दिखने लगता है । 

जब इन हिस्सों में अम्ल पाँव पसारने लगता है तब पेट में जलन व हार्ट बर्निंग नहीं होती है बल्कि सिर में निरंतर भारीपन का रहना, आँखो में भारीपन, पेट में ब्लोटिंग का होना,  छाती में अकड़न, पेशाब में जलन, गुदा द्वार में जलन, हृदय की धमनियों में कठोरता और शरीर के पूरे मांसपेशियों में दर्द व थकान का होना महशूश होना इत्यादि समस्याएँ दिखनी शुरू हो जाती हैं । यहाँ तक कि चिकित्सा विज्ञान भी इसे स्वीकार नहीं करता । 

जहां तक मेरा अनुभव है कि पेट में जलन का होना असिडिटी का एक सामान्य लक्षण है, यह कोई गम्भीर समस्या नहीं है, शरीर संकेत देती है कि पानी की मात्रा में अधिकता एवं प्राणायाम व जीवन शैली में बदलाव से इसे ठीक कर लो । यदि इसे यहाँ नहीं नियंत्रित किया गया तब यह देह के अंदर जल में प्रवेश करने पर गम्भीर समस्या बन बैठता है । 

यहाँ तक कि वर्षों वर्षों तक रक्त में अम्ल के बढ़ने पर मस्तिष्क की कोशिकाओं में क्षय की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं, हरक्त में कैल्सिफ़िकेशन भी देखने को मिलती है जो हृदय के रोग को बढ़ाने का कारण होता है । 

अत्यधिक अम्लीयता का दूसरा प्रमुख कारण रक्त में CO2 का बढ़ना होता है । इसी कारण रक्त के उसके अंदर स्थित जल का परिशोधन नहीं होने पाता है । यदि ऑक्सेजनेशन कर दिया जाए तो जल का की शुद्धता बढ़ जाएगी और असिडिटी की अधिकता व उसके प्रतिक्रिया से छुटकारा पाता जा सकेगा । 

समाधान के रूप दो तत्वों पर ज़ोर देना आवश्यक है , पहला शरीर में जल की मात्रा का प्रतिशत बढ़ाना भले ही प्यास न लगे । सम्भव है कि शरीर को प्यास लगनी ही बैंड हो गयी हो इसलिए उसमें पानी की मात्रा उचित अनुसार बढ़ानी आवश्यक है । 

इसके बाद दूसरा प्रमुख समाधान प्राण शक्ति को रक्त के अंदर वृद्धि करना जिससे उसमें स्थित जल व रक्त का शोधन हो सके । ध्यान दें यदि शरीर के अंदर प्रवाहित जल में ऑक्सिजन की वृद्धि कर दी जाए तो उसे बहुत कम समय में अत्यधिक अम्लीयता से छुटकारा दिलाया जा सकता है । यहाँ पर एक प्राणायाम की चर्चा करने जा रहें हैं जो बहुत सावधानी पूर्वक करने पर शरीर में स्थित दूषित जल (Acidic Water) को शुद्ध किया जा सकता है । 

पेट से किया गया प्राणायाम (ऐब्डॉमिनल ब्रीधिंग)


बिस्तर पर सीधा लेट कर इस प्राणायाम को रात्रि में सोने से पहले और सुबह में उठकर पानी पीने के बाद 11-11 मिनट तक करना चाहिए । धीरे धीरे साँसों को आराम से भरते हुए पेट को आराम से फुलाएँ और 3 सेकंड रोकें और उसके बाद आराम से साँसों को बाहर प्रयत्नशील ढंग से निकलें साथ साथ पेट को पिचकाएँ नहीं । स्वभाव के अनुरूप कभी कभी साँस को मुँह से भी निकलना लाभदायक साबित होता है । इस प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन करते रहने पर प्रभाव जल्द से जल्द मिल जाता है ।

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