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हाइपर एसिडिटी- यौगिक समाधान

3 years ago By Yogi Anoop

सिद्धांत  

 तनावग्रस्त आधुनिक भौतिक युग में मस्तिष्क पर विचारों की नकारात्मक प्रतिक्रिया से जो भी हार्मोनल सिक्रीशन होती है वह आमाशय के लिए रोग लाने वाली ही नहीं बल्कि अनेको गम्भीर रोगों को देने वाली होती है । अनेकों प्रतिक्रियाओं में से एक हाइपर असिडिटी के रूप में प्रतिक्रिया दिखती है जो पूरे देह ही नहीं बल्कि मस्तिष्क की शक्ति को भी क्षीण कर देती है । भविष्य में यही समस्या अनेको गम्भीर रोगों को जन्म देती है । 

कभी कभार इसका होना कोई गम्भीर समस्या का द्योतक नहीं किंतु यदि आए दिन  होने लगे तो इसे इग्नोर नहीं किया जा सकता है । 

जब इसके लक्षण - पेट या सीने में जलन, गैस बनना, डकार आना, मिचली आना, मुंह में खट्टा पानी आना, कब्ज तथा सिर का भारी होना आदि दिखने लगे तो इसे हमें संजीदगी से ले कर इलाज की ओर बढ़ना चाहिए । 

सर्वप्रथम इसके इलाज के रूप में जीवन शैली को नियमित करना बहुत आवश्यक है । जिसमें मानसिक आराम , मांसपेशियों और नाड़ियों की relaxation, भोजन की गुणवत्ता और मात्रा , पर विशेष ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए । 

इसके साथ साथ जो भी मानसिक और शारीरिक तनाव शरीर और मस्तिष्क पर दिया जा चुका उसको ठीक करने हेतु योगिक चिकित्सा में आसन प्राणायाम और ध्यान की चिधियाँ है जो बहुत ही लाभकारी है साथ साथ पूर्ण रूप से इलाज देने वाली हैं । 

   

आसन

जो भी तनाव दैनिक क्रियाओं में दिया जाता है उसकी मुक्ति के लिए हमें कुछ आसनों का अभ्यास करना चाहिए जिससे विशेष रूप से आमाशय तनाव रहित हो जाय और हाइपर असिडिटी न होने पाए । ध्यान दें कि इस समस्या के निदान के लिए वही आसन का अभ्यास उचित है जो देह में वात और पित्त का संतुलन बना कर हाइपर असिडिटी को कम कर दे । एक और बात का विशेष ध्यान देना होगा कि किसी भी आसन व प्राणायाम को बहुत हाइपर हो कर अभ्यास नहीं करना है । 

यह पर कुछ आसनों का विवरण दिया जा रहा है 

जैसे -पवनमुक्तासन, तितली आसन, वज्रासन, सुप्त वज्रासन, मंडूकासन, भुजंग आसन तथा हलासन आदि आसन बहुत प्रभावकारी सिद्ध हो सकते हैं। इन आसानी को किसी विशेष निर्देशन में ही करना उपयुक्त होता है , क्योंकि रोगी स्वयं के अनियमित स्वभाव की वजह से योगी अभ्यास भी अनियमित ढंग से करने लगता है । 

आसानी के अभ्यास में रक्तचाप को ध्यान में अवश्य रखा जाना चाहिए जिससे स्वभाव को भी कूल और calm किया जा सके । बहुत उत्तेजित हो कर किया गया शासन व प्राणायाम रोगी की का रोग घटाने के बजाय बढ़ा देता है ।  


प्राणायाम

इस हेतु उज्जायी , शीतली प्राणायाम , बायीं नासिक व चंद्रभेदी प्राणायाम व काकी मुद्रा का अभ्यास बहुत लाभकारी होता है। 

यहां पर काकी मुद्रा के अभ्यास की विधि का वर्णन किया गया है-

ध्यान के किसी भी आसन पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में रीढ़ गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइए। आखों को ढीली बंद कर पांच लंबी और गहरी श्वास प्रश्वास लीजिए। अब, सजगतापूर्वक ओठों को कौए के मुख की तरह गोलाकार बनाते हुए मुख से ही लंबी, गहरी और धीमी श्वास अंदर (पूरक) लीजिए। इसके तुरंत बाद मुख को सामान्य कर नासिका से लंबी, गहरी और धीमी प्रश्वास (रेचक) बाहर निकालिए। यह काकी मुद्रा की एक आवृत्ति है। प्रारंभ में इसकी बारह आवृत्तियां तथा अंततः इसे साठ तक ले जाइए। 

सावधानी- कफ प्रवृत्ति के लोग इस मुद्रा का अभ्यास न कर उज्जायी या शीतली प्राणायाम का अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में करें।

शिथिलीकरण और ध्यान- आज के इस भौतिक युग में मनुष्य की सभी समस्याओं का मूल कारण मानसिक तनाव और भावनात्मक असंतुलन है। जिसका एकमात्र स्थाई समाधान ध्यान और योग निद्रा ही है। इसलिए यदि हमें शरीर, मन और भावनाओं को स्वस्थ रखना है तो इसका अभ्यास हम सभी को प्रतिदिन नियमित रुप से सुबह-शाम इसका अभ्यास करना चाहिए।

आहार- प्राकृतिक, सात्विक तथा संतुलित आहार लें। तली भुनी, मिर्च मसाले दार भोजन का कड़ाई से परित्याग करें। भोजन खूब भूख लगने पर लें तथा अति आहार से बचें। भोजन खूब चबा-चबाकर खाएं तथा नियमित समय पर ही भोजन करें।


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