गंभीर स्वभाव वालों में स्वास-प्रश्वास स्वाभाविक रूप से मंद और गंभीर होती है । वह इसलिए क्योंकि उनकी सभी इन्द्रियाँ स्थिरता से अत्यंत प्रेरित होती हैं । यहाँ तक कि इनके अंदर चलने वाले विचारों की गति में बहुत तेज़ी भी नहीं होती है , विचारों के मध्य एक माध्यम दूरी बनी हुई होती है जिसके कारण उनके अंदर धैर्य और शांति भरपूर मात्रा में मौजूद होता है । इसी कारण उनमें अंतर्ज्ञान की मात्र अधिक होती है बनिस्बत उन चंचल व्यक्तित्व वालों से ।
यदि इनके इन्द्रियों में आँखों और साँसों की गति को देखा जाये तो उसमें भी गंभीरता देखने को मिलती है ।
प्राणायाम और योग के ज्ञेय ऋषियों ने इस रहस्य को समझने का सूक्ष्म प्रयास किया था इसीलिए उन्होंने उन उन असंगाओं और प्राणायाम की खोज किया जो स्वभाव की गंभीरता पर बल देता था । उनका मानना था कि यदि स्वभाव शांत और गंभीर होगा तो सांसें गहरी और लंबी स्वतः ही हो जायेंगी ।
इन ऋषियों और योगियों ने जानवरों के स्वभाव का भी आकलन किया और उनके उनके इन्द्रियों के साथ सांसों के चाल चलन को भी देखा जिसमें यह पाया कि कछुआ एक ऐसा जीव है जो स्वभावगत शांत और स्थिर है । और उसकी श्वास प्रश्वास अत्यंत लंबी है । इसी को ध्यान में रखते हुए कुछ ऋषियों ने कछुए को विष्णु भगवान के अवतार के रूप में स्वीकार किया । इसलिए कि ईश्वर में कोई जल्दीबाजी नहीं , ईश्वरत्व में स्वभाव का उसके इंद्रियों पर प्रतिक्रिया पड़ते हुए दिखाया गया । जो जैसा करेगा वैसे ही उसमें प्रतिक्रिया होगी । अर्थात् जिस प्रकार का स्वभाव होगा वैसे ही उसकी कर्मेंद्रियों और ज्ञानेन्द्रियों में प्रतिक्रियाएँ देखने को स्वतः ही मिलेगी ।
वह इसीलिए क्योंकि स्वभाव, देह के प्रत्येक तंत्र को प्रभावित करता है । उसमें साँसें भी सम्मिलित होती है । जैसे कछुए का गंभीर स्वभाव उसकी इन्द्रियों को स्वतः ही मंद और स्थिर कर देती है । यही कारण है कि उसकी सांसे और हृदय की धड़कने बहुत गंभीर होती है । यदि स्वभाव में ही जल्दीबाजी कम है तो उसके साँसों का धीरे धीरे चलना स्वाभाविक है और साथ साथ उसके हृदय का आराम आराम से धड़कना स्वाभाविक होगा । ध्यान दें , इसी के विपरीत जितने भी जल्दीबाज़ी वाले स्वभाव के व्यक्तित्व होते हैं उनकी साँसों की गति में तथा हृदय की गति में बहुत तेज़ी दिखती है । ऐसे स्वभाव में जीवन की लम्बाई भी कम देखने को मिलती है । क्योंकि जल्दीबाज़ी का स्वास प्रश्वास और हृदय से बहुत सीधा संबंध होता है ।
यही कारण है कि स्वभाव को गहरा बनाने के लिए ऋषियों ने बहुत कार्य किया , और साथ साथ ध्यान के अभ्यास पर जोर दिया । ध्यान में स्वभाव के रहस्यों को समझने पर जोर दिया न कि सांसों के नियंत्रण पर । किंतु सांसों को एक तरह से माध्यम बनाया कि स्वभाव गहन और स्थिर हो जाय । ध्यान में अभ्यासी श्वास प्रश्वास के लय को जितना समझता जाता है उतना ही स्वभाव शांत और स्थिर होता जाता है , विचारों के अंबार ढहते जाते हैं । मेरे अनुभव में विचार जितने कम होते हैं उतने ही स्वभाव में प्रगाढ़ता आती है । ध्यान में साँसों के प्राकृतिक स्वरूप को जितना गहराई से अनुभव करते जाते हैं उतना ही मस्तिष्क तंत्र शांत होता जाता है । और साँसे स्वतः धीरे धीरे मंद होती जाती है ।
मेरे अनुभव में उन इन्द्रियों और मस्तिष्क के सूक्ष्म तंत्रों को व्यावहारिक समय (Real Time) में शांत और स्थिर किया जाये तो इन साँसों की गति स्वाभाविक रूप में गंभीर किया जा सकता है । यहाँ तक कि यौगिक अभ्यास की साधना के समय साँसों के लय को समझना बहुत ही गूढ़तम रहस्यों में से एक ।
गंभीर स्वभाव वालों में साँसों की गति
गंभीर स्वभाव वालों में स्वास-प्रश्वास स्वाभाविक रूप से मंद और गंभीर होती है । वह इसलिए क्योंकि उनकी सभी इन्द्रियाँ स्थिरता से अत्यंत प्रेरित होती हैं । यहाँ तक कि इनके अंदर चलने वाले विचारों की गति में बहुत तेज़ी भी नहीं होती है , विचारों के मध्य एक माध्यम दूरी बनी हुई होती है जिसके कारण उनके अंदर धैर्य और शांति भरपूर मात्रा में मौजूद होता है । इसी कारण उनमें अंतर्ज्ञान की मात्र अधिक होती है बनिस्बत उन चंचल व्यक्तित्व वालों से ।
यदि इनके इन्द्रियों में आँखों और साँसों की गति को देखा जाये तो उसमें भी गंभीरता देखने को मिलती है ।
प्राणायाम और योग के ज्ञेय ऋषियों ने इस रहस्य को समझने का सूक्ष्म प्रयास किया था इसीलिए उन्होंने उन उन असंगाओं और प्राणायाम की खोज किया जो स्वभाव की गंभीरता पर बल देता था । उनका मानना था कि यदि स्वभाव शांत और गंभीर होगा तो सांसें गहरी और लंबी स्वतः ही हो जायेंगी ।
इन ऋषियों और योगियों ने जानवरों के स्वभाव का भी आकलन किया और उनके उनके इन्द्रियों के साथ सांसों के चाल चलन को भी देखा जिसमें यह पाया कि कछुआ एक ऐसा जीव है जो स्वभावगत शांत और स्थिर है । और उसकी श्वास प्रश्वास अत्यंत लंबी है । इसी को ध्यान में रखते हुए कुछ ऋषियों ने कछुए को विष्णु भगवान के अवतार के रूप में स्वीकार किया । इसलिए कि ईश्वर में कोई जल्दीबाजी नहीं , ईश्वरत्व में स्वभाव का उसके इंद्रियों पर प्रतिक्रिया पड़ते हुए दिखाया गया । जो जैसा करेगा वैसे ही उसमें प्रतिक्रिया होगी । अर्थात् जिस प्रकार का स्वभाव होगा वैसे ही उसकी कर्मेंद्रियों और ज्ञानेन्द्रियों में प्रतिक्रियाएँ देखने को स्वतः ही मिलेगी ।
वह इसीलिए क्योंकि स्वभाव, देह के प्रत्येक तंत्र को प्रभावित करता है । उसमें साँसें भी सम्मिलित होती है । जैसे कछुए का गंभीर स्वभाव उसकी इन्द्रियों को स्वतः ही मंद और स्थिर कर देती है । यही कारण है कि उसकी सांसे और हृदय की धड़कने बहुत गंभीर होती है । यदि स्वभाव में ही जल्दीबाजी कम है तो उसके साँसों का धीरे धीरे चलना स्वाभाविक है और साथ साथ उसके हृदय का आराम आराम से धड़कना स्वाभाविक होगा । ध्यान दें , इसी के विपरीत जितने भी जल्दीबाज़ी वाले स्वभाव के व्यक्तित्व होते हैं उनकी साँसों की गति में तथा हृदय की गति में बहुत तेज़ी दिखती है । ऐसे स्वभाव में जीवन की लम्बाई भी कम देखने को मिलती है । क्योंकि जल्दीबाज़ी का स्वास प्रश्वास और हृदय से बहुत सीधा संबंध होता है ।
यही कारण है कि स्वभाव को गहरा बनाने के लिए ऋषियों ने बहुत कार्य किया , और साथ साथ ध्यान के अभ्यास पर जोर दिया । ध्यान में स्वभाव के रहस्यों को समझने पर जोर दिया न कि सांसों के नियंत्रण पर । किंतु सांसों को एक तरह से माध्यम बनाया कि स्वभाव गहन और स्थिर हो जाय । ध्यान में अभ्यासी श्वास प्रश्वास के लय को जितना समझता जाता है उतना ही स्वभाव शांत और स्थिर होता जाता है , विचारों के अंबार ढहते जाते हैं । मेरे अनुभव में विचार जितने कम होते हैं उतने ही स्वभाव में प्रगाढ़ता आती है । ध्यान में साँसों के प्राकृतिक स्वरूप को जितना गहराई से अनुभव करते जाते हैं उतना ही मस्तिष्क तंत्र शांत होता जाता है । और साँसे स्वतः धीरे धीरे मंद होती जाती है ।
मेरे अनुभव में उन इन्द्रियों और मस्तिष्क के सूक्ष्म तंत्रों को व्यावहारिक समय (Real Time) में शांत और स्थिर किया जाये तो इन साँसों की गति स्वाभाविक रूप में गंभीर किया जा सकता है । यहाँ तक कि यौगिक अभ्यास की साधना के समय साँसों के लय को समझना बहुत ही गूढ़तम रहस्यों में से एक ।
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