घटनाओं पर चर्चा करने वाले लोगों में कुछ आदतें ऐसी होती हैं जिससे कर्मेंद्रियाँ प्रभावित होती हैं । सामान्य लोग घटनाओं पर चर्चा बहुत पसंद करते हैं , यदि बनी बनाई घटना नहीं मिलती तो घटनाओं का मन में निर्माण भी कर लेते हैं । और उसी पर घंटों-घंटों चर्चा करते हुए पाए जाते हैं । जब इंद्रियाँ घटनाओं पर अधिक निर्भर होती हैं तब पाँचों कर्म इंद्रियाँ अर्थात् मुँह हाथों ,पैरों , गुदा द्वार ,तथा जननेंद्रिय प्रभावित होने लगती हैं । इसीलिए अधिक बोले वाले लोगों में गुदा द्वार के साथ नाभि को अंदर की ओर सिकोड़ने की आदत बन जाती है । ज़्यादातर बोलने वाले लोगों में पैरों हिलाते हुए देखा जाता है ।
एक और महत्वपूर्ण बात - घटनाओं पर बात करने वाले लोग किसी भी व्यक्ति के बारे में बात करने का केंद्र बिंदु सेक्स पर आधारित होता है । और यदि वह धार्मिक है तो भगवान में romance ढूँढता है । इसीलिए जितने भी भगवान हुए उनमें कहीं न कहीं romance की बात डाली गयी । उन्होंने romance किया अथवा नहीं किंतु उनकी सेक्शूअल जीवन को पवित्र रोमैन्स में परिवर्तित कर दिया जाता है ।
कुछ एक धर्म ऐसे भी हैं जो मृत्यु के बाद भी “सेक्शूअल प्लेस” की इमैजिनेशन में जुटे हुये होते हैं । जहां पर सिर्फ़ और सिर्फ़ सेक्स की नदियाँ बहती हैं ।
इसीलिए घटना विशेष पर बुद्धि को सीमित करने से मानसिक विकास पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो जाता है , और कहीं न कहीं इंद्रियाँ हिंसात्मक रूप लेने लगती हैं । क्योंकि इंद्रियाँ, घटना विशेष से बाहर नहीं जा पाती है , उनमें स्वतंत्रता जब नहीं आ पाती है तब हिंसात्मक हो उठती हैं ।
मुँह का कार्य बहुत अधिक होता है, अर्थात् बोलना
और खाना बहुत अधिक होता है ।
पैर को हिलाते रहने की आदत होती है ।
हाथों को बहुत हिलाने की आदत का होना ।
बात करते समय गुदा द्वार को खींचे रहते हैं ।
बात करते समय नाभि में को अंदर सिकोड़ते हैं ।
व्यक्ति को चाहिए कि किसी गुरु के संरक्षण में रहकर बुद्धि को विकसित करे साथ साथ इंद्रियों को ढीला करे । अवलोकन सीखे । प्राणायाम की गहराईं में जाकर नासिका इंद्रिय से मस्तिष्क को शांत करे । आँखों की इंद्रिय का अवलोकन करके दृश्य इंद्रिय को ढीला शांत करे, त्वचा इंद्रिय पर कार्य करे , स्वाद इंद्रिय पर भी उसे कम करना चाहिए । तभी पंचों इंद्रियों को ढीला और शांत करने में कामयाबी मिल पाएगी , और साथ साथ ज्ञानेंद्रयों के शांत और स्थिर होने पर कर्मेंद्रियाँ स्वतः ही सामान्य हो जाएँगी ।
ज्ञानेंद्रियों घटनाओं से बाहर निकल कर ज्ञान में बाधें अर्थात् यम में चलना
कर्मेंद्रियों को नियम में बांधें ।
विशेषकर मुँह कर्मेंद्रिय को आवश्यकता से अधिक बोलने न दें ।
बोलने का बहुत अधिक मन करे तो लिखने अथवा पढ़ने से मन को शांत करें ।
स्वाद इंद्रिय को संतुष्ट करें , प्राणायाम के द्वारा स्वाँस को बेहतर करें ।
आसान के द्वारा रीढ़ के अभ्यास से नाड़ियों का अभ्यास करें ताकि मन शांत हो।
यम नियम और आसान बेहतर करने पर माल निष्कासन अच्छी तरह से होता है।
प्रत्याहार के माध्यम से मन इंद्रियों को दिशा देना चाहिए ।
धरना और ध्यान चित्त को स्थिर कर देता है इसलिए इसका अभ्यास करें ।
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