‘जिस दिन हमें गहरी और सुकून भरी नींद मिलती है, उस दिन हमारा पेट भी स्वाभाविक रूप से साफ़ हो जाता है’
ऐसा सिर्फ़ एक अथवा दो नहीं बल्कि 100 में से 40 फ़ीसदी लोगों का कहना होता है । यद्यपि लगभग 60 फ़ीसदी लोगों का इसके उलट अनुभव है । वह यह कि जब पेट साफ़ होता है तब नींद बहुत अच्छी आती है ।
यदि चिकित्सीय व एक सामान्य व्यक्ति की जिसे बहुत कब्ज़ रहती है, दृष्टि से देखे तो कब्ज़ के ठीक होने पर नींद में बेहतरी होती है । उनका कहना होता है कि उनकी नींद की समस्या कब्ज़ के कारण बढ़ गई है । उसके पहले उतनी समस्या न थी । स्वप्न इत्यादि आते थे , ऐसा उनका कहना होता है ।
आंशिक रूप से यह सत्य भी है क्योंकि जब भी पेट में किसी भी प्रकार की संकट अवस्था होती है तो नींद में बाधा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है । किंतु इसके साथ साथ मेरे अनुभव में लगभग 40 फीसदी लोगों में जिनकी मानसिक जागरूकता अधिक है उन्हें नींद की समस्या की अनुभूति पहले होती हुई दिखती है । उन्हें कई वर्षों से नींद में बाधाएं , स्वप्न इत्यादि पहले से दिखते आते हैं । वे उन स्वप्नों व नींद में आंशिक बाधा को कोई समस्या के रूप में नहीं देखते थे ।
ऐसे लोग जब भी सुबह में उठते थे तब उनकी संतुष्टि निम्न स्तर पर होती थी । संतुष्टि की अनुभूति निम्नतम स्तर पर होने के कारण पेट के न साफ़ होने की समस्या देखने लगती है । साथ साथ हृदय की गति का बढ़ा हुआ रहना भी दिखता था । चूँकि सुबह उठते ही उनका पूरा शरीर और मस्तिष्क थका हुआ अनुभव होता था , उन्हें ऐसा लगता था कि पूरी रात भर कुछ न कुछ मानसिक क्रिया चलती रही और यही कारण है कि देह और इन्द्रिय थकी हुई होती थी ।
यदि मैं इसके पीछे के विज्ञान में जाने का प्रयत्न करूँ तो मुझे इस सूक्ष्मता का अनुभव बहुत प्रत्यक्ष ढंग से दिखता है । गहरी नींद में देह के सम्पूर्ण अंग विशेषकर हृदय, फेफड़ा , लिवर, किडनी और आँतों का हिस्सा होता है । चूँकि गहन निद्रा में मस्तिष्क का सम्पूर्ण हिस्सा विचारों से स्वतंत्र होता है तो उस समय देह के सभी अंग भी स्वतंत्र रूप से स्वयं में स्थित हो जाते हैं । देह के सभी अंग अपने स्वभाव में कार्य करते है जो उनका मूल स्वभाव है ।
जैसा कि मैं हमेशा कहता हूँ कि देह में दो प्रकार की क्रियाएँ चलती हैं , एक अनैक्षिक और दूसरा मनो-ऐक्षिक अर्थात् ऐसी क्रिया जो मन के द्वारा इन्द्रियों के माध्यम से मस्तिष्क और देह में की जा रही होती है । गहन निद्रा में यही मनो-ऐक्षिक क्रिया लगभग न के बराबर होती है जिसके कारण इस देह तंत्र को स्वयं में अनैक्षिक क्रिया को स्वतंत्र रूप से करने में सफलता हासिल हो जाती है । यही कारण है कि इस समय देह और मस्तिष्क को कुछ घंटों के लिए पूर्ण रूप से समय मिल जाता है कि वह अपने स्वभाव में कार्य कर सके । अपने को रिसेट कर सके ।
इस रिसेट (reset) की प्रक्रिया में देह और मस्तिष्क से विष को निकालने की एक स्वाभाविक क्रिया का प्रारंभ होता है । यही कारण है कि जब व्यक्ति गहरी नींद से सोकर सुबह उठता है तब उसका मूत्र और मल त्याग होता है । यहाँ तक कि आँखों से कीचड़ और कफ़ के निकलने की स्वाभाविक क्रिया भी सुबह उठने के बाद दिखने को मिलती है । बच्चों में तो आँखों से कीचड़ की मात्रा बहुत अधिक निकलते हुए दिखने को मिलता है ।
इसीलिए मेरी कोशिश होती कि मल त्याग के लिए गहरी नींद को सबसे पहले साधन बनाना चाहिए । यदि यह गहन निद्रा मिल जाय तो आँतों से संबंधित समस्या का बहुत हद्द तक समाधान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है ।
गहरी नींद के लिए व्यक्ति को कुछ साधन अवश्य अपनाने चाहिए जैसे सोने के पहले प्राणायाम और ध्यान ।
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