ध्यान दें देह व देह के अंगों को कम से कम 7 घंटे तक तो किसी की भी दख़लंदाज़ी पसंद नहीं होती है इसी को तो निद्रा कहते हैं । मैं तो कहता हूँ कि दिन के समय भी यदि देह पर कम से कम हस्तक्षेप किया जाये तो देह स्वयं को स्वयं से ही हील कर लेगा । उसे न तो तेल पिलाना पड़ेगा और न ही मिट्टी में लोटवाना पड़ेगा । न तो गुदा द्वार को खोलने के लिए एनीमा लेना पड़ेगा और न ही आँतों को सक्रिय करने के लिए सिर्फ़ सब्ज़ी के जूस पर निर्भर रहना पड़ेगा ।
मेरा अनुभव कहता है कि देह के अंदर अनुभव करने वाला देह को हील नहीं करता । बल्कि जब वह देह से गहन से गहन अनुभव करके संतुष्ट हो जाता है तब देह को तनाव देना बंद कर देता है और देह स्वयं को ही हील करने लगता है ।
मैं हमेशा कहता हूँ कि हेम्स अपने बेवक़ूफ़ियों को समझना चाहिए । यदि हम इस देह में तनाव देना कम से कम कर देंगे तो यह देह स्वयं को ही हील करना शुरू कर देता है ।
पर समस्या यह है कि हम सभी देह को हील करने के लिए मन में कल्पनाओं और सोच की शुरुआत करना शुरू कर देते हैं । मैं हमेशा से यही कहता आया हूँ कि मन पर जितना अधिक बोझ डालोगे , चाहे वह सकारात्मक व नकारात्मक विचार , उससे यह देह में हीलिंग नहीं संभव है ।
मेरी एक स्टूडेंट ने मुझसे प्रोग्राम लिया । मेरे द्वारा पूरे प्रोग्राम में जिसमें योग और प्राणायाम की विधि सममित होने के साथ साथ अंत एक सेब को खाने की सलाह दिया था । योग और प्राणायाम के अंत में एक सेब ले लेना ।
उस प्रोग्राम को समझने के लिए उन्हीं पर उत्तरदायित्व डाल दिया । मैंने उन्हें उस प्रोग्राम को समझाने के प्रयास के बजाय उन्हीं पर ज़िम्मेदारी डालने का प्रयास किया । मेरी कोशिश थी कि वह उस प्रग्राम को समझने की कोशिश करें , और यदि न समझ पाएँ तो तो मैंने पूछने के लिए कहा ।
लगभग 10 मिनट के बाद उनके द्वारा व्हाट्स ऐप मेसेज आता है जिसमें उन्होंने यह पूँछा कि
उस सेब को कैसे लूँ जोअपने अंत में लिखा है । पूछना शुरू हो गया कि इसे छील कर लूँ या बिना छीले खाऊँ !
फिर से एक और मेसेज - यदि आप कहें तो इसे जूस के माध्यम से ले सकती हूँ । मेरे पास कोल्ड प्रेस जूसर है । यद्यपि उन्होंने इसी के ज़रिए ये भी बता दिया कि उनके पास इस प्रकार का जूसर भी है ।
फिर एक और मेसेज आता - यदि आप कहें तो सेब को तेल में भिगो करके भी ले सकती हूँ ! मुझे किसी भी कार्य में आपत्ति नहीं है ।
फिर से एक अगला मेसेज - यदि आप कहें तो इसका अँचार भी बना कर इसे खा सकती हूँ । क्योंकि यह भी मेरे पास रखा हुआ है । खाने पीने में मैं कई वर्षों से बहुत सतर्क रहती हूँ ।
अंत में उनका मेसेज आता है कि यदि आप कहेंगे तो ऐपल विनेगर ही ले लूँ । मतलब कि विनेगर भी पहले लेती रही होगीं ।
मैंने अंत में उत्तर दिया -
मैंने कहा अब आपको सेब लेने की कोई आवश्यकता नहीं है - अब अंदर जाकरके भी सेब कुछ कर न सकेगा । सेब के बारे में इतना अध्ययन तो न्यूटन जैसा वैज्ञानिक ने भी नहीं किया होगा । आप उसे अब छोड़ ही दें ।
उस पूरे प्रोग्राम में उनका ध्यान सिर्फ़ सेब पर ही गया था । पूरे योग और ध्यान के प्रोग्राम को समझने में गया ही नहीं । मैं जानता हूँ कि वे समझ नहीं पाएगी उस प्रोग्राम को । क्योंकि उस प्रोग्राम को समझना आसान न था । मैंने उनके स्वभाव को इसके माध्यम से जान लिया । उनका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ सेब को खाने पर वह भी छील करके और न छील करके ।
मन उस विषय पर इतना इतना अधिक विचार कर रहा है जिस पर विचार करने की आवश्यकता न थी । विचार करने की आवश्यकता जहां पर थी (योग-प्राणायाम) वहाँ पर हमने किया ही नहीं । मन उस विषय पर अपना ध्यान एकाग्र करके सारी शक्तियों को क्षीण कर रहा है जिस पर कई भी प्रकार से ज्ञान प्राप्त ही न हो सकेगा ।
मन मस्तिष्क और देह को इतना क्यों संशयात्मक बना रहे हो ! क्यों इतना हस्तक्षेप कर रहे हो !
इसी को एंजाइटी कहते हैं । ऐसे लोग इसे ही परफेक्शन कहते हैं किंतु यह ओवर्थिंकिंग की निशानी है । मैं इसे घोर एंजाइटी कहता हूँ ।
सेब खाने को कहा था सिर्फ़ उसे खा लेते । किंतु नहीं आदत है बाल की खाल निकालने की । अनावश्यक ही मस्तिष्क को बोझिल बनाने की ।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि देह और इंद्रियों को ढीला छोड़ो , देह को यदि ढीला छोड़ने में कामयाबी मिल गई तो जो भी खाओगे उसे यह देह पचा लेगा ।
इसके बाद देह स्वयं को स्वयं के द्वारा हील कर लेगा ।मैं इसीलिए हमेशा से यही कहता आया हूँ कि
इसी गूढ़ रहस्य को जानने के लिए योग निद्रा का अभ्यास करना बहुत करो । ध्यान करो ।
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