मन स्वभावगत चलायमान है, वह इसीलिए है क्योंकि उसने बाहरी संसार से इंद्रियों के माध्यम द्वारा चलते हुए दृश्यों को अंदर ग्रहण हुआ है । वाह्य संसार में कोई भी दृश्य स्थिर नहीं है, सब कुछ चलायमान है, न परिवर्तन दिखने वाले तत्वों में भी अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तन होता रहता है । पाँचो इंद्रियाँ जब इन चलायमान तत्वों को अपने अंतरतम में ग्रहण करती हैं तब मन चलायमान हो उठता है । मन के चलायमान होने का अर्थ है कि भाव पैदा होना । यदि मन के अंदर कोई भी वस्तु न चले , तो भाव व विचार पैदा नहीं हो सकते हैं । क्योंकि मन के अंदर कोई भी वस्तु चलती है तभी कहानी पैदा होती है , कहानी के बाद ही भाव पैदा होते हैं ।
यही कारण है कि मन के अंदर भी कोई न कोई दृश्य एवं विचार निरंतर चलते रहते हैं । बिलकुल वैसे ही जैसे आप बाहर कोई फ़िल्म देखते हैं । उसी प्रकार अंतः कारण में भी दृश्य विचारों को घेर कर चलते रहते हैं ।
यदि वे दृश्य रुक जायँ तो भाव रुक जाएँगे, साथ-साथ मन का चलना भी रुक जाएगा । प्रारम्भ में व्यक्ति युवा रहने पर सोचना बहुत अच्छा लगता है, यहाँ तक कि नकारात्मक और कामुक सोच भी मस्तिष्क को कहीं न कहीं परेशान के बजाय ऊर्जा दे देती है । किंतु एक उम्र सीमा के बाद देह और मस्तिष्क की क्षमता स्वाभाविक रूप से कम होती जाती है साथ साथ चलायमान दृश्यों और विचारों के चलने की गति धीमी होने के बजाय और तेज हो जाती है । जिसके कारण मन मस्तिष्क और शरीर थकता जाता है और कष्ट और फ़्रस्ट्रेशन के साथ साथ देह में कई रोग होने लगते हैं ।
ध्यान दें कल्पनाओं के चलने के कारण ही भाव पैदा होते हैं, सुख दुःख पैदा होता है और उसी के बाद दैहिक और मानसिक रोग प्रारम्भ होता है । यदि उनके चलने को रोक दिया जाय तो भाव पैदा ही नहीं हो सकते । यदि दीवाल पर टंगा हुआ चित्र जो स्थिर है, जो चलता नहीं है , जो सिर्फ़ दीवाल पर टंगा हुआ है , उसको आँखों से देखा जाय तो कल्पनाओं और भावों का चलना रुक जाता है जिससे मस्तिष्क पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है । वह इसलिए कि वह चित्र चलायमान नहीं । मन थोड़ी देर के लिए रुक जाता है । रुकने का अर्थ है कि मन के अंदर चलने वाली कहानी में सभी पात्रों का रुक जाना । इसे ही पॉज़ (Pause) कहा जाता है ।
इसी पॉज़ का ध्यान में अभ्यास किया जाता है जिससे धीरे धीरे मन के अंदर दृश्यों का चलना अल्पकाल के लिए रुक जाता है । इसी एकाग्रता को हठयोग में ध्यान कहा जाता है ।
हठयोग में बाहर के संसार में एकाग्रता न करके देह के अंदर कुछ ऐसे बिंदु व चक्रों पर एकाग्रता करवाया जाता है जो वास्तव में देह के अंदर केंद्रबिंदु के रूप में कार्य करते हैं । ये सभी केंद्र शरीर के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक भी होते है ।
हठ योग में इन्हीं केंद्र विंदुओं पर मन को केंद्रित करके शरीर और मस्तिष्क के भिन्न भिन्न भागों को शक्ति प्रदान किया जाता है । इसी एकाग्रता से मस्तिष्क के अंदर के प्रमुख बिंदु में ऊर्जा पैदा करके हॉर्मोसं को संतुलित किया जाता है । ध्यान दें मस्तिष्क के अंदर होर्मोनल सिक्रीशन के बढ़ने व घटने पर ही भावनात्मक लहरों में उतार चढ़ाव देखने को मिलता है । इसीलिए एकाग्रता के माध्यम से मस्तिष्क के अंदर स्थित ग्लैंड्ज़ को tune कर दिया जाता है जिससे मस्तिष्क को शक्ति मिलनी प्रारम्भ हो जाती है और साथ साथ भावनात्मक रूप से कुछ घंटों के लिए आराम मिल जाता है । और उसके बाद ए और मस्तिष्क स्वतः ही स्वयं ही अंदर स्थित व्याधियों को दूर करने लगता है ।
जैसे - मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर एकाग्रता करने क़ब्ज़ और मूत्र से सम्बंधित कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है । मणिपुर पर एकाग्रता से पाचनन किडनी लिवर से सम्बंधित कई समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है । अनाहत और विशुद्धि चक्र पर एकाग्रता से हृदय, फेफड़ों और थाइरॉड से सम्बंधित अनेको समस्याओं से छुटकारा पाता जा सकता है , साथ में आज्ञा चक्र पर ध्यान की एकाग्रता से मस्तिष्क के अंदर समस्त ग्लैंड को स्वस्थ बनाकर कई समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है ।
कई ऐसे सामान्य रोग होते हैं जिसका समाधान किसी भी चिकित्सा में बिना कोई साइड इफ़ेक्ट दिए नहीं होता है तो इस योग में एकाग्रता के माध्यम से ठीक किया जा सकता है ।
जैसे - क़ब्ज़ , वायु रोग , कफ़ व अम्ल पित्त रोग , सिर दर्द , hypertension, स्वाँस रोग व अस्थमा, हाइपर असिडिटी, reflux, इत्यादि ।
यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है कि हठ योग शक्ति जागृत करता है न कि ज्ञान । एकाग्रता के द्वारा शक्ति को बढ़ाकर कई व्याधियों को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है किंतु रोगों की गम्भीरता यदि बहुत अधिक है तब किसी अनुभवी गुरु के संरक्षण में ही अभ्यास करना उचित है ।
इसके उपरांत स्थिर पूर्वक शक्ति को बढ़ाने के बाद आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधक को ज्ञान योग का सहयोग लेना अवश्य लेना चाहिए जिससे वह अंतर्मन के क्लेशों को भी दूर कर सके ।
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