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एक विचार की लत: संतुलन का खतरा

4 years ago By Yogi Anoop

मन की आसक्ति और संतुलन का महत्व

जब मन को किसी पवित्र वस्तु या विचार में बांध दिया जाता है, तो उसका ध्यान केवल उसी पर केंद्रित हो जाता है। इससे अन्य अपवित्र या अनावश्यक वस्तुएं उसे आकर्षित नहीं कर पातीं, क्योंकि मन में उनके प्रति भोग की इच्छा समाप्त हो जाती है। इसे आप मन को एक आदत में ढालने की प्रक्रिया समझ सकते हैं।

यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे भोजन के किसी विशेष स्वाद की आदत। जब जीभ को किसी एक स्वाद की आदत पड़ जाती है, तो वह अन्य स्वादों के प्रति रुचि खो देती है। लेकिन क्या यह आदत हमेशा लाभकारी होती है?

एक विचार की लत: संतुलन का खतरा

जीवन में हर प्रकार के विचारों की आवश्यकता होती है। यदि मन और मस्तिष्क को केवल एक ही विचार में बांध दिया जाए, तो उनका संतुलन बिगड़ सकता है। संतुलन खोने के बाद, मन और मस्तिष्क ऐसे कार्य करने लगते हैं, जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती।

किसी एक विचार की लत लगने का यह अर्थ नहीं है कि अन्य विचार मस्तिष्क में आना बंद हो जाते हैं। बल्कि, वे और भी अधिक बेढंगे और अनियंत्रित रूप से प्रकट होते हैं। यह स्थिति उसी तरह है जैसे एक पियक्कड़, जो शराब का आदी है, अन्य सभी चीजों के प्रति अपनी रुचि और समझ खो देता है। वह शराब के अलावा बाकी सभी चीजों से विरक्त हो जाता है, लेकिन उसकी आसक्ति की प्रवृत्ति समाप्त नहीं होती।

आसक्ति: समाधान या समस्या?

जो लोग किसी एक विचार या आदत के प्रति आसक्त हो जाते हैं, वे दरअसल अपनी आसक्ति को और गहराई से मजबूती देते हैं। ऐसे लोग ज्ञानी नहीं होते, बल्कि उन्हें “लती” कहा जाता है। उनकी यह आसक्ति, चाहे किसी पवित्र वस्तु से ही क्यों न हो, उन्हें संकीर्ण बनाती है।

आसक्ति का अर्थ यह नहीं है कि आपने अपनी इच्छाओं पर विजय पा ली है। इसका अर्थ है कि आपने अपनी इच्छाओं को एक नई दिशा में मोड़ दिया है। लेकिन यह मोड़ भी आपको मुक्त नहीं करता, बल्कि आपको एक नए बंधन में बांध देता है।

संतुलन का महत्व

जीवन में मन और मस्तिष्क को केवल एक विचार या आदत तक सीमित करने की बजाय, उन्हें संतुलित और खुला रखना चाहिए। संतुलन वह अवस्था है, जहां मन किसी एक विचार में बंधे बिना भी शांति और स्थिरता में रहता है।

संतुलन के लाभ:

1. आसक्ति का समाप्त होना: मन किसी विशेष वस्तु या विचार का गुलाम नहीं बनता।

2. स्वतंत्र सोच: मस्तिष्क विभिन्न विचारों को स्वतंत्र रूप से ग्रहण कर सकता है।

3. आंतरिक शांति: संतुलन मन और मस्तिष्क को स्थिरता और शांति प्रदान करता है।

4. विकास का मार्ग: एक विचार में बंधे बिना, मनुष्य विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचारों और कार्यों का विकास कर सकता है।

मन को पवित्र विचारों में बांधना अच्छा हो सकता है, किंतु केवल तभी जब वह विचार मन को संतुलित और शांत रखे। किसी एक विचार या आदत की लत लगने से मन का स्वभाव विकृत हो सकता है। इसलिए, जीवन में संतुलन का महत्व समझें और अपने मन और मस्तिष्क को खुला रखें।

मन की स्वतंत्रता और संतुलन ही वास्तविक ज्ञान और शांति की कुंजी है। यही अवस्था आपको आसक्ति से मुक्त कर सकती है और आपके जीवन को आनंदमय बना सकती है।

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