जो सोच सिर्फ़ दिमाग़ में है उसको तो ख़त्म किया भी जा सकता है किंतु जिस को आपने जिया है उसको भला ख़त्म कैसे कर सकते हो ।
आज के 40 वर्ष पहले जिस घर में मैंने अपना बचपन बिताया , उस घर का आकार, रंग, उस समय की हर एक छोटी से छोटी वस्तु कहाँ कहाँ थी, वो सभी मेरे स्मृति में मौजूद है । किंतु यदि आज वह घर वैसा है नहीं जो 40 वर्ष पहले था । किंतु मेरे स्मृति में सब कुछ वही आकार , रंग वस्तुएँ सब कुछ वही है ।
मैं उन सभी पुराने यादों को जो मेरी स्मृति में है , उसे समाप्त करना चाहूँ तो भी नहीं कर सकता । जब भी उन स्मृतियों को अपने दिमाग़ में लेंगे , मस्तिष्क के अंदर हार्मोनल सीक्रेशन hone लगती है । ध्यान दें ये स्मृतियाँ जितनी अधिक और तीव्र होती हैं उतनी ही समस्या देह और मन में बढ़ती है ।
संभवतः इसीलिए मनुष्य उन पुरानी स्मृतियों को समाप्त करना चाहता है । वह उन्हीं स्मृतियों को समाप्त करना चाहता है जो बहुत दुखदाई है , किंतु साथ साथ सुखदायी स्मृतियों को समाप्त नहीं करना चाहता । यह भला कैसे संभव है ।मेरे अपने अनुभव में किसी भी प्रकार की स्मृति को समाप्त नहीं किया जा सकता है ।
अब यही पर ध्यान देना है -
हम उसे ख़त्म नहीं कर सकते हैं, यदि वे सदा के लिए ख़त्म हो जाएँ तो उसे पागलपन कहा जाएगा , हमें तो सिर्फ़ ये चाहिए कि उस स्मृति का दुष्प्रभाव हमारे नाड़ियों पर न पड़े या कम से कम पड़े जिससे कि हमारे अंदर दुःख न हो , रोग न हों । । मेरे अनुसार तो बहुत सारी बीमारियों का मूल कारण हमारी स्मृति ही होती है ।
सबसे अच्छा साधन : किसी भी स्मृति के दुष्प्रभाव को ख़त्म करने के लिए केवल एक ही अंतिम उपाय है , वह है वर्तमान में गहनता से जीना ।
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