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दिनचर्या को ब्रेक करने से स्वास्थ्य !

2 years ago By Yogi Anoop

दिनचर्या को ब्रेक करने से रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति बड़ती है ।  


दिनचर्या को कड़ाई से पालन करने वाले लोगों में स्थान परिवर्तन से विचारों और शरीर में परिवर्तन देखा गया है,  ऐसा प्रयोग के दौरान मैंने पाया । 

एक ही परिस्थिति में कुछ दिनों व महीनों तक लगातार रहने पर मानसिक तनाव एवं देह के अंदर असंतुलन में वृद्धि होती देखी गयी है । क्योंकि दिनचर्या में होने वाली एक जैसी घटनाएँ  एवं एक जैसे भावों का रेपटिशन उसके मन को उबाने लगता है ।  । यह सत्य है कि एक जैसी घटनाएँ, एक ही जैसा कार्य प्रतिदिन करते रहने से मन ऊबने लगता है, उसमें कोई उमंग नहीं दिखता है । उसे लगता है कि जीवन का रस चला गया । 


वही पत्नी, उसी से सेक्स , वही बच्चे , वही ऑफ़िस , वही सारे लोग जो एक दूसरे की काट में लगे रहते हैं । सब कुछ वही है । 

युवा अवस्था में नौकरी पाना एक लक्ष्य होता है, उस समय रेपटिशन से फ़र्क़ नहीं पड़ता है क्योंकि लक्ष्य को पाना है । नौकरी पाने के बाद एक अच्छी लड़की से शादी करनी है , अब शादी के बाद बच्चे । इसके बाद क्या ? 


इसके बाद हर एक दिन वही देखते देखते , प्रत्येक घटनाएँ बहुत ही उबाऊ प्रक्रिया लगने लगती है ।  प्रतिदिन मन में एक जैसे विचारों के लगातार चलने पर मस्तिष्क ऊबने व थकने भी लगता है जिससे शरीर पर उसका दुष्प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो जाता है ।

ध्यान दें यह नियम भोजन पर भी लागू होता है, प्रतिदिन सादा और सात्विक या एक ही तरह का राजसिक व तामसिक भोजन करते रहने से मन और शरीर का क्रियात्मक पहलू कमजोर होने लगता है । मन  को मिलने वाला संतोष प्रतिदिन लगभग उसी तरह का होता है । वह उस संतुष्टि का आदती हो जाता । ध्यान दें एक तामसिक भोजन करने वाला आदती व्यक्ति भविष्य में भोजन में परिवर्तन करता भी है तो कुछ और तामसिक की तरफ़ ही जाता बजाय कि सात्विक भोजन के । चाय पीने वाला व्यक्ति बहुत अधिक परिवर्तन करता है तो कॉफ़ी पी लेता है , और परिवर्तन किया रसगुल्ला खा लेता है । कहने का अर्थ है नकारात्मक परिवर्तन कर लेता है ,वह यह कभी भी नहीं कर सकता कि किसी दिन चाय ही न पिए । 


   ऐसे ही कई प्राकृतिक चिकित्सकों पर एक प्रयोग के दौरान मैंने पाया कि उनके लगातार एक ही प्रकार के सात्विक भोजन करते रहने से फ़ाइटिंग इम्यूनिटी कमजोर हो गयी । शरीर और मन की प्रतिरोधक शक्ति में बहुत कमी देखने को मिली । इसीलिए बहुत सारे प्राकृतिक चिकित्सकों में बहुत बीमारियाँ देखने को मिलती हैं । उनका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ भोजन और जूस पर ही टिक जाता है , ऐसे मानो कि शारीरिक स्वास्थ्य सिर्फ़ विशेष स्वाद ग्रंथियों तक ही सीमित है । ऐसा ही होता तो जिह्वा के अंदर अन्य स्वाद ग्रंथियाँ होती ही नहीं । 


     ध्यान दें व्यक्ति अपने दिनचर्या व उस परिस्थिति को तोड़ने के लिए जब किसी अन्य स्थान पर जाता  हैं तब उसके अंदर किसी एक ही प्रकार के विचारों के लगातार चलने का क्रम टूटता है और साथ साथ भोजन का क्रम भी टूट जाता है । सारी इंद्रियाँ जिन्हें एक ही प्रकार की चीजें मिल रही थीं अब उसमें बदलाव आ जाता है  । 

इन सभी दैनिक क्रमों के टूटने से मस्तिष्क का अन्य भाग जिसका उपयोग वह अपनी दिनचर्या के दौरान नहीं कर पाता था, करने लगता है । एक और महत्वपूर्ण बात जिसमें मन और इंद्रिय को किसी एक नई परिस्थिति को सम्भालने के लिए वर्तमान में अधिक रहना पड़ता है । नया स्थान , मन को नया अनुभव देना प्रारम्भ करता है । 

साथ साथ अवकाश लेने से पहले वह अपने मन को तैयार भी किए रहता है कि उसे उस दिनचर्या से कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेना है अर्थात् कुछ भी नहीं करना है, कुछ भी नहीं सोचना । 

यहाँ तक कि परिस्थिति के बदलने पर बहुत सारे लोगों की दिनचर्या में होने वाले सिर में भारीपन, हाइपर असिडिटी वे शरीर में होने वाले दर्द से बिल्कुल छुटकारा पा जाते हैं । 

 

     प्रारम्भिक ऋषियों के घुमंतू स्वभाव को देखने पर यह ज्ञात होता है कि उन्हें स्थान परिवर्तन का लाभ कितना मिलता रहा होगा और साथ साथ भिन्न भिन्न प्रकृति के लोगों से सामना भी हो ज़ाया करता था जिससे उनके द्वारा स्वयं और व्यक्तियों के अंतरतम को समझने में बहुत सहायता मिलती रही होगी । सम्भवतः इसीलिए उन महान ऋषियों ने आध्यात्म के रूप एक उपहार इस मनुष्य जगत को दिया । 

यद्यपि यह भी सत्य है कि निरंतर घुमंतू रहने से भी शारीरिक रोगों के बढ़ने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं यद्यपि वे ऋषि बारिस वाले मौसम में किसी एक स्थान पर टिक ज़ाया करते थे । किंतु यहाँ पर बात हो रही है अल्पकालिक अवकाश व बदलाव की । 


इसीलिए मैं भोजन में बदलाव का पक्षधर तो हूँ ही साथ कभी भी एक ही प्रकार के यौगिक क्रियाओं को करने की भी सलाह नहीं देता 

। दिनों व महीनों में उसे बदलते रहने पर ज़ोर देता हूँ ताकि मस्तिष्क व रीढ़ के भिन्न भिन्न हिस्सों में भी प्रभाव देखने को मिले । इससे मन शरीर की संतुष्टि का श्रोत बढ़ता है साथ साथ रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है । 

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