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ध्यान; साधन ही साध्य है

2 months ago By Yogi Anoop

साधन ही साध्य बन जाता है इस टर्टल ध्यान में। 


छात्र: गुरुजी, आप कछुए और खरगोश की कहानी के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। क्या इसमें कोई गहरा अर्थ भी है?


योगी अनूप: बिल्कुल। यह कहानी सिर्फ एक साधारण नैतिक पाठ नहीं है। यह धैर्य और स्थिरता के महत्व को दर्शाती है। कछुआ धीमी गति से, परंतु पूरी स्थिरता और धैर्य के साथ अपनी यात्रा पूरी करता है, जबकि खरगोश अपनी जल्दबाज़ी और अधीरता के कारण हार जाता है। इस कहानी में यही सिखाया गया है कि जीवन में स्थिरता और अनुभवों से भरी यात्रा अधिक मायने रखती है।


छात्र: लेकिन गुरुजी, अगर कल्पना करें कि इस कहानी में खरगोश जीत जाता, तो क्या कुछ बदलता?


योगी अनूप : यह एक दिलचस्प सोच है। कल्पना करें कि खरगोश जीत जाता, लेकिन क्या वह इस जीत को अच्छी तरह से अनुभव कर सकता है ?  उसकी स्वाभाविक अधीरता और जल्दबाजी क्या उसे शांति का अनुभव करा पाएगी? मेरे अनुभव में, नहीं। भले ही वह जीत भी जाए, उसकी अंदरूनी अस्थिरता और हड़बड़ी उसे सच्ची शांति का अनुभव नहीं करने देगी। उसकी यात्रा में सिर्फ जल्दीबाजी थी, उसके अंतरतम में सिर्फ और सिर्फ हड़बड़ी थी गंतव्य को प्राप्त करने की । उसका पूरा ध्यान गंतव्य पर था , साधन पर नहीं था । यही कारण है कि उसने कभी स्थिरता का अभ्यास अपनी यात्रा में किया ही नहीं ।


छात्र: तो आप कहना चाहते हैं कि यात्रा में स्थिरता न होने से, भले ही गंतव्य पर पहुँचे, मन को शांति नहीं मिल पाएगी?


योगी अनूप : बिल्कुल। जीवन में शांति का अनुभव सिर्फ मंजिल पर पहुँचने से नहीं होता; यह यात्रा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। खरगोश का सारा ध्यान सिर्फ जल्दी पहुँचने में था, न कि संतुलन और स्थिरता में। ऐसे में, चाहे वह मंजिल तक पहुँच भी जाए, अस्थिरता का एहसास उसके साथ बना रहेगा। इसके विपरीत, कछुए की यात्रा हर पल स्थिरता और शांति से भरी थी, जिससे उसे गहराई से अनुभव हुआ कि यह केवल दौड़ नहीं, बल्कि एक यात्रा है। ऐसी यात्रा आध्यात्मिक अनुभवों से भरी हुई होती हैं । नैतिकता से पूर्ण होती हैं । 


छात्र: गुरुजी, क्या इसका मतलब यह है कि जीवन को धैर्य और स्थिरता से जीना ही असली रहस्य है?


योगी अनूप : बिल्कुल। जीवन को एक लंबी यात्रा के रूप में देखना चाहिए, जिसमें हर कदम को महसूस किया जाए। भारतीय पुराणों में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है, वह इसलिए कि प्रकृति में गति स्वाभाविक है , उसमें कोई जल्दीबाजी नहीं होती है । इसीलिए विष्णु को रक्षा करने का भगवान माना जाता है । कहने का मूल अर्थ है कि स्वाभाविक गति ही स्वयं की स्वतः रक्षा करता है । वह जीवन की गुणवत्ता को मौजूद रखता है , गुणवत्ता को समाप्त होने नहीं देता ।  

जो इस विचार को दर्शाता है कि जीवन एक यात्रा है। जितनी धीमी, शांतिपूर्ण और स्थिरता से इस यात्रा को जिएंगे, उतना ही शांति और संतुलन का अनुभव होगा। अंततः यह सिद्ध है कि जीवन जैसी लंबी यात्रा में धैर्यहीन जीवों की जीत कभी संभव नहीं हो सकती है । 


छात्र: गुरुजी, आपने टर्टल ध्यान पद्धति की बात की थी। क्या यह इसी विचार से प्रेरित है?


योगी अनूप: जी, मैंने ध्यान की कई पद्धतियाँ इसी आधार पर विकसित की हैं, जो हमें विचारों और भावनाओं से मुक्त कर जीवन की यात्रा को समझने में मदद करती हैं। इसमें अंतिम उद्देश्य नहीं होता, बल्कि हर पल का अनुभव उद्देश्य बन जाता है। इस पद्धति में सुषुम्ना नाड़ी सबसे अधिक सक्रिय होती है और “रेस्ट एंड डाइजेस्ट” तंत्र अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करता है।


छात्र: क्या इससे लंबी उम्र का लाभ भी मिल सकता है?


योगी अनूप : चूँकि मैं अत्यंत व्यावहारिक और आनुभविक तथ्यों पर ही बात करता हूँ । इस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यह यात्रा ही एक ऐसी यात्रा है जो आध्यात्मिक अनुभवों को करा सकती है । यह मेरा अनुभव है । जहाँ तक लंबी उम्र की है । उसका अभी अनुभव नहीं है । जब लंबी उम्र जियूँगा तो वह स्वतः ही सिद्ध हो जाएगा । किंतु मेरे लिए गुणवत्ता का सर्वाधिक महत्व है जिसमें आत्म बोध है । । 

टर्टल ध्यान: धैर्य और स्थिरता से जीवन की यात्रा


छात्र: गुरुजी, आप कछुए और खरगोश की कहानी के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। क्या इसमें कोई गहरा अर्थ भी है?


योगी अनूप: बिल्कुल। यह कहानी सिर्फ एक साधारण नैतिक पाठ नहीं है। यह धैर्य और स्थिरता के महत्व को दर्शाती है। कछुआ धीमी गति से, परंतु पूरी स्थिरता और धैर्य के साथ अपनी यात्रा पूरी करता है, जबकि खरगोश अपनी जल्दबाज़ी और अधीरता के कारण हार जाता है। इस कहानी में यही सिखाया गया है कि जीवन में स्थिरता और अनुभवों से भरी यात्रा अधिक मायने रखती है।


छात्र: लेकिन गुरुजी, अगर कल्पना करें कि इस कहानी में खरगोश जीत जाता, तो क्या कुछ बदलता?


योगी अनूप : यह एक दिलचस्प सोच है। कल्पना करें कि खरगोश जीत जाता, लेकिन क्या वह इस जीत को अच्छी तरह से अनुभव कर सकता है ?  उसकी स्वाभाविक अधीरता और जल्दबाजी क्या उसे शांति का अनुभव करा पाएगी? मेरे अनुभव में, नहीं। भले ही वह जीत भी जाए, उसकी अंदरूनी अस्थिरता और हड़बड़ी उसे सच्ची शांति का अनुभव नहीं करने देगी। उसकी यात्रा में सिर्फ जल्दीबाजी थी, उसके अंतरतम में सिर्फ और सिर्फ हड़बड़ी थी गंतव्य को प्राप्त करने की । उसका पूरा ध्यान गंतव्य पर था , साधन पर नहीं था । यही कारण है कि उसने कभी स्थिरता का अभ्यास अपनी यात्रा में किया ही नहीं ।


छात्र: तो आप कहना चाहते हैं कि यात्रा में स्थिरता न होने से, भले ही गंतव्य पर पहुँचे, मन को शांति नहीं मिल पाएगी?


योगी अनूप : बिल्कुल। जीवन में शांति का अनुभव सिर्फ मंजिल पर पहुँचने से नहीं होता; यह यात्रा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। खरगोश का सारा ध्यान सिर्फ जल्दी पहुँचने में था, न कि संतुलन और स्थिरता में। ऐसे में, चाहे वह मंजिल तक पहुँच भी जाए, अस्थिरता का एहसास उसके साथ बना रहेगा। इसके विपरीत, कछुए की यात्रा हर पल स्थिरता और शांति से भरी थी, जिससे उसे गहराई से अनुभव हुआ कि यह केवल दौड़ नहीं, बल्कि एक यात्रा है। ऐसी यात्रा आध्यात्मिक अनुभवों से भरी हुई होती हैं । नैतिकता से पूर्ण होती हैं । 


छात्र: गुरुजी, क्या इसका मतलब यह है कि जीवन को धैर्य और स्थिरता से जीना ही असली रहस्य है?


योगी अनूप : बिल्कुल। जीवन को एक लंबी यात्रा के रूप में देखना चाहिए, जिसमें हर कदम को महसूस किया जाए। भारतीय पुराणों में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है, वह इसलिए कि प्रकृति में गति स्वाभाविक है , उसमें कोई जल्दीबाजी नहीं होती है । इसीलिए विष्णु को रक्षा करने का भगवान माना जाता है । कहने का मूल अर्थ है कि स्वाभाविक गति ही स्वयं की स्वतः रक्षा करता है । वह जीवन की गुणवत्ता को मौजूद रखता है , गुणवत्ता को समाप्त होने नहीं देता ।  

जो इस विचार को दर्शाता है कि जीवन एक यात्रा है। जितनी धीमी, शांतिपूर्ण और स्थिरता से इस यात्रा को जिएंगे, उतना ही शांति और संतुलन का अनुभव होगा। अंततः यह सिद्ध है कि जीवन जैसी लंबी यात्रा में धैर्यहीन जीवों की जीत कभी संभव नहीं हो सकती है । 


छात्र: गुरुजी, आपने टर्टल ध्यान पद्धति की बात की थी। क्या यह इसी विचार से प्रेरित है?


योगी अनूप: जी, मैंने ध्यान की कई पद्धतियाँ इसी आधार पर विकसित की हैं, जो हमें विचारों और भावनाओं से मुक्त कर जीवन की यात्रा को समझने में मदद करती हैं। इसमें अंतिम उद्देश्य नहीं होता, बल्कि हर पल का अनुभव उद्देश्य बन जाता है। इस पद्धति में सुषुम्ना नाड़ी सबसे अधिक सक्रिय होती है और “रेस्ट एंड डाइजेस्ट” तंत्र अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करता है।


छात्र: क्या इससे लंबी उम्र का लाभ भी मिल सकता है?


योगी अनूप : चूँकि मैं अत्यंत व्यावहारिक और आनुभविक तथ्यों पर ही बात करता हूँ । इस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यह यात्रा ही एक ऐसी यात्रा है जो आध्यात्मिक अनुभवों को करा सकती है । यह मेरा अनुभव है । जहाँ तक लंबी उम्र की है । उसका अभी अनुभव नहीं है । जब लंबी उम्र जियूँगा तो वह स्वतः ही सिद्ध हो जाएगा । किंतु मेरे लिए गुणवत्ता का सर्वाधिक महत्व है जिसमें आत्म बोध है । 


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