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ध्यान: अनुभव का विज्ञान है

1 month ago By Yogi Anoop

ध्यान: अनुभव और वास्तविकता का विज्ञान

ध्यान (मेडिटेशन) विचारों और कल्पनाओं की यात्रा नहीं है, बल्कि यह एक वास्तविक और गहन अनुभव है, जो विचारों और कल्पनाओं के झंझावातों से परे ले जाता है। इसका उद्देश्य आत्मा, मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करना और जीवन के प्रत्येक क्षण को गहराई से अनुभव करके स्वयं को विषयों से मुक्त करना होता है। मेरे अनुभव में, अनुभव की कमी ही विषयों में आसक्ति बढ़ाती है। यदि विषयों का अनुभव अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि से किया जाए, तो उन विषयों के समस्त रहस्यों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही, स्वयं का भी ज्ञान हो जाता है। यही मुक्ति का पूर्ण और अंतिम मार्ग है।

सामान्य व्यक्ति विषयों का अनुभव सूक्ष्मता से कर पाने में सक्षम नहीं होता। यही कारण है कि उसे विषय मायावी लगते हैं और यह भ्रम होता है कि विषयों ने उसे जकड़ रखा है। जबकि सत्य यह है कि उसकी अज्ञानता के कारण उसने विषयों को पकड़ रखा है। वह केवल विषयों से जुड़ा हुआ है, उनका आंशिक अनुभव ही कर पाता है। इसी कारण वह न तो विषयों से पूर्ण सुख प्राप्त कर पाता है, न ही स्वयं से शांति।

ध्यान: जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का माध्यम

गुरु हमें जीवन को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने की शिक्षा देते हैं। हर व्यक्ति जीवन को अपनी समझ और अनुभव के आधार पर देखता है, किंतु ध्यान और साधना हमें इस दृष्टिकोण का विस्तार करने में मदद करते हैं। जब हम जीवन को केवल एक ही नजरिए से देखते हैं, तो हमारा मस्तिष्क सीमित हो जाता है और उसका विकास रुक जाता है।

विषयों को भिन्न दृष्टिकोणों से देखने और अनुभव करने की क्षमता विकसित होती है। ध्यान दें, यह विषय अत्यंत गंभीर होते हैं। इसमें डूबने के बजाय अनुभव के माध्यम से तैरना बेहतर होता है। अनुभव, विषयों से चिपकने नहीं देता। जैसे, भोजन का स्वाद केवल हल्का-फुल्का चखने से खाने की लालसा बनी रहती है और संतुष्टि नहीं होती। लेकिन यदि भोजन का स्वाद गहराई से लिया जाए, तो भोजन के प्रति लालसा समाप्त हो जाती है।

इसीलिए ध्यान और योग को केवल सुबह या शाम के कुछ घंटों की प्रक्रिया तक सीमित नहीं रखना चाहिए। यह हर पल की साधना है। इसमें दैनिक जीवन के अनुभवों को आत्मसात करना होता है। जैसे-जैसे आप ध्यान में गहराई से उतरते हैं, आपके भीतर नए आयाम खुलते हैं। शरीर, मन और मस्तिष्क पर प्रयोग करते हुए, आप यह समझने लगते हैं कि यह सब कैसे कार्य करता है।

साधना का वास्तविक उद्देश्य

ध्यान का उद्देश्य केवल कल्पनाओं में खो जाना नहीं है। यह फैंटेसी नहीं, बल्कि एक वास्तविक अनुभव है। उदाहरण के लिए, यदि किसी ऐसे फल के स्वाद के बारे में बताया जाए जिसे आपने पहले कभी नहीं चखा हो, तो आप केवल कल्पना के माध्यम से उसका अनुमान लगाने का प्रयास करेंगे। लेकिन क्या वह वास्तविक अनुभव होगा? बिल्कुल नहीं। उस फल का वास्तविक स्वाद तभी समझ में आएगा, जब आप उसे चखेंगे।

ध्यान का सिद्धांत भी यही है। इसे केवल सोचने या कल्पना करने तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह एक वास्तविक अनुभव है, जो आपकी स्मृति और जीवन का हिस्सा बन जाता है। ध्यान का प्रभाव गहराई से मन और मस्तिष्क पर पड़ता है और यह आपके जीवन में स्थायी बदलाव लाता है।

सांस: ध्यान का माध्यम

ध्यान में सांस पर ध्यान केंद्रित करना केवल उसे अनुभव करने के लिए है, न कि उसे नियंत्रित करने के लिए। जब आप सांस को बिना हस्तक्षेप के महसूस करते हैं, तो आप उस स्वाभाविक प्रक्रिया को समझने लगते हैं, जो मृत्यु तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निरंतर चलती रहती है। जब आप इस स्वाभाविक प्रक्रिया को समझकर उसे उसके लय में छोड़ देते हैं, तो यही पूर्णता है।

इसे मैं “साक्षी भाव” कहता हूं। इस दृष्टा भाव में कोई कल्पना नहीं होती कि आप सांस से अलग हैं। यह समझने की प्रक्रिया है। यह एक अनुभव है, जिसमें आप अपनी शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं को गहराई से समझते हैं।

रिलैक्सेशन और तनाव का संतुलन

ध्यान का अभ्यास आपके मस्तिष्क और शरीर को गहराई से विश्राम देने में मदद करता है। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि मस्तिष्क का विश्राम केवल एक निश्चित समय तक ही सहनीय होता है। जैसे ही इंद्रियां और मस्तिष्क अधिक शांत और विश्राम अवस्था में जाते हैं, अनुभवकर्ता (आप) उससे अलग हो जाते हैं। वह या तो अल्पकालिक मृत्यु (नींद) में जाता है, या फिर पूर्ण मृत्यु की ओर।

इससे यह भी सिद्ध होता है कि शरीर की कोशिकाओं और उसके सूक्ष्मतम हिस्सों में विश्राम की अपनी सीमा होती है। एक निश्चित समय के बाद, यह शुषुप्तावस्था से जागृत अवस्था में आ जाते हैं और जागृत अवस्था से शुषुप्तावस्था में। इसी प्रक्रिया को समझना ही ध्यान है।

ध्यान के अभ्यास का उद्देश्य इन प्रक्रियाओं के प्रति जागरूक होना है। हालांकि यह अंतिम लक्ष्य नहीं है। इसका उद्देश्य स्वयं का पूर्ण ज्ञान करना है।

ध्यान: जीवन का हिस्सा

इसीलिए मैं ध्यान को केवल सुबह-शाम का कार्य नहीं मानता। यह हर पल की साधना है, जो आत्म-अनुशासन और सतत अभ्यास से आती है। इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। जैसे आप किसी मीठे फल का स्वाद लेकर उसे याद रखते हैं, वैसे ही ध्यान के अनुभव को अपनी स्मृति में गहराई से आत्मसात करें।

ध्यान केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि अनुभव और वास्तविकता का विज्ञान है। इसे अपनाइए और जीवन के गहनतम आयामों को समझने का प्रयास कीजिए। यही आपके जीवन को नए अर्थ और उद्देश्य से भर देगा।

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