धरण का शाब्दिक अर्थ है बाँधना, शक्ति केंद्र, सूर्य। कच्चे घरों में छत को सहारा देने के लिए जिस मोटी लकड़ी का उपयोग होता था, उसे धरन, धरण या धन्नी कहा जाता था। इसका मूल अर्थ है—शरीर में वह स्थान जो पूरे शरीर (देह) को थामे हुए है, उसे धरण या नाभि कहा जाता है। यह देह का केंद्र बिंदु है, जो गुरुत्वाकर्षण का स्रोत है और नाभि व धरण के नाम से जाना जाता है।
जन्म के पूर्व और नाभि का महत्व
जन्म से पूर्व इसी स्थान (नाभि नली) के माध्यम से माँ बच्चे को पोषण देती है। जन्म के बाद जब माँ और बच्चे के बीच संबंध काट दिया जाता है, तो एक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अपना कार्य करना प्रारंभ करता है। इसी केंद्र के माध्यम से शरीर का सूक्ष्म संचालन होता है। हालांकि, आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से ऐसा कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं दिखता। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि इस स्थान को शल्य चिकित्सा के माध्यम से निकाल भी दिया जाए, तो शरीर के स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
एक दृष्टिकोण से यह कथन सत्य हो सकता है, किंतु व्यावहारिक प्रयोगों के दौरान इस केंद्र बिंदु का शरीर और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस स्थान के कमजोर होने पर न केवल पाचन तंत्र प्रभावित होता है, बल्कि धीरे-धीरे शरीर में क्षय होने के लक्षण भी दिखने लगते हैं। मानसिक रूप से भी व्यक्ति कमजोर पड़ने लगता है क्योंकि यही स्थान है, जहाँ से सबसे अधिक ऊर्जा यकृत (लिवर) को जाती है।
लिवर और नाभि केंद्र
गर्भ में बच्चे का जुड़ाव जिस नाल (नली) से होता है, उससे ऊर्जा सबसे पहले यकृत तक पहुँचती है। लिवर शरीर के विकास में सबसे अधिक भागीदारी करता है। बच्चे के जन्म के बाद पाचन मुख के माध्यम से शुरू होता है, फिर भी नाभि केंद्र का महत्व समाप्त नहीं होता।
सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए, तो नली काटे जाने के बाद भी नाभि का महत्व बना रहता है। वह क्षेत्र ऊर्जा का अप्रत्यक्ष स्रोत बना रहता है। इस केंद्र में दबाव और खिंचाव के कारण पाचन और निष्कासन तंत्र प्रभावित होते हैं। सही तरीके से इस केंद्र को सक्रिय करने से फैटी लिवर जैसी समस्याओं में सुधार भी संभव है।
धरण व नाभि के डिगने (हटने) के कारण
1. वाह्य कारण: भारी वजन उठाना या पैर का असंतुलित रूप से ऊपर-नीचे होना। अत्यधिक भोजन करने की आदत । भोजन की गुणवत्ता में में हमेशा कमी किए रखना जिससे कब्ज़ और अपच इत्यादि के होने से नाभि केंद्र का संतुलन हट जाता है । भोजन में अति करने वाले लोगों में नाभि के ऊपरी अर्थात डायफ़्राम का हिस्सा बहुत तनाव में रहने लगता है । इससे भी नाभि केंद्र पर तनाव आ जाता है । बहुत से लोगों में जिनका व्यापार ही शरीर को की मशपेशियों को बनाने का होता है जैसे खेल कूद , फ़िल्म में कार्य करें वाले लोग , ये सभी अपने पेट को अंदर ज्ञात रूप में अंदर दबाए रहते हैं । यह उनकी आदत में शुमार होता है । इससे भी धीरे धीरे नाभि क्षेत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है ।
2. आंतरिक कारण: मानसिक तनाव। चिंतनशील और चिंताशील स्वभाव के लोग अक्सर पेट के मध्य और ऊपरी हिस्से को अंदर की ओर खींचे रखते हैं। बहुत से लोगों में सोचने व किसी एक स्थान पर एकाग्रता के समय इन्द्रियों में बहुत खिंचाव आ जाता है , व अज्ञानतावश खिंचाव दे दे देने से पेट की मांसपेशियों में खिंचाव सदा के लिए बना रहता है । परिणामस्वरूप नाभि व धारण का स्थान हमेशा खिंचाव में रहने लगता है । क्योंकि व्यक्ति मस्तिष्क में खींचने का स्वभाव बना दिया गया है । और वह स्वभाव अज्ञानतावश पूरे पेट के हिस्से को हमेशा ही खींचे रहने लगता है । यहीं नाभि से संबंधित समस्याएं प्रारंभ हो जाती है ।
अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि वे पेट में तनाव तो नहीं देते है फिर भी उन्हें यह समस्या क्यों हो रही है? तो उन्हें यह बताना चाहता हूँ कि अज्ञात रूप में वे तनाव दे रहे होते हैं उन्हें इसका ज्ञान नहीं होता है । इसके मूल करण में उनके सोचने की प्रवृत्ति है, जिसमें पेट को अंदर की ओर खींचने की आदत होती है।
लक्षण ; पेट में दर्द या भारीपन , भूख का न लगना, कब्ज़ या दस्त, मानसिक थकान और कमजोरी, नाभि क्षेत्र में चुभन या दबाने पर दर्द, लिवर का फैटी होना, छाती व सिर में भारीपन, बिना गंध वाली डकारें, आँखों व माथे में भारीपन।
समाधान और योगिक उपचार
धरण और नाभि की समस्या के लिए योग सबसे उत्तम उपाय है। निम्नलिखित अभ्यास लाभदायक सिद्ध होते हैं: योगासन:
मध्य नाड़ी सुधार अभ्यास, सुप्त वज्रासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, पवनमुक्तासन ।
ध्यान रखें इन अभ्यासों को किसी अनुभवी गुरु के निरीक्षण में करना चाहिए।
प्राणायाम: नाड़ी शोधन प्राणायाम, टर्टल प्राणायाम इत्यादि
वाह्य उपाय: कमर की मालिश (पेट की मालिश उचित नहीं मानी जाती), हिंग, अजवाइन और त्रिफला का सेवन (विशेषज्ञ के निर्देशन में)
यहाँ यह ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात है कि धरण व नाभि शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र है। यह केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। योग और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से इस समस्या का समाधान संभव है।
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