Loading...
...

धरण से संबंधित प्रश्नोत्तर

1 month ago By Yogi Anoop

धरण और नाभि केंद्र – योगी अनूप और शिष्यों के मध्य संवाद (आयुर्वेद, योग, अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय)

शिष्य: गुरुजी, आपने धरण और नाभि केंद्र के बारे में बहुत सुंदर रूप से बताया। क्या इसे आयुर्वेद, योग, अध्यात्म और आधुनिक विज्ञान से भी जोड़ा जा सकता है?

योगी अनूप: बिल्कुल! नाभि केंद्र को आयुर्वेद, योग, अध्यात्म और आधुनिक विज्ञान – चारों ही दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। इन सभी में नाभि का अपना विशेष महत्व है।

आयुर्वेद का दृष्टिकोण

शिष्य: गुरुजी, आयुर्वेद में नाभि केंद्र का क्या महत्व बताया गया है?

योगी अनूप: आयुर्वेद के अनुसार नाभि केंद्र को “नाभि मर्म” कहा गया है। यह एक अत्यंत संवेदनशील ऊर्जा बिंदु है। आयुर्वेद मानता है कि नाभि पाचन, स्राव (secretion) और शरीर की ऊर्जा का केंद्र है। इसी के आधार पर नाड़ी की परीक्षा भी करने का प्रावधान भी कहीं कहीं दिखता है । इसके आधार पर नाड़ी का पूर्ण ज्ञान संभव होता है और उसका चिकित्सीय पक्ष मजबूत किया जाता है । कुछ आयुर्वेदिक आचार्य तो उन्ही जड़ी बूटियों का प्रयोग करते हैं जो नाभि क्षेत्र को बेहतर करे । 

1.नाभि और पाचन: पाचन अग्नि (जठराग्नि) का स्रोत नाभि क्षेत्र में माना गया है। यदि नाभि में असंतुलन हो, तो पाचन कमजोर हो जाता है। 

2.प्रसूति विज्ञान: गर्भावस्था के दौरान नाभि से ऊर्जा और पोषण का प्रवाह होता है। यह शिशु के जीवन का मूल आधार है। इसी के माध्यम से एक की ऊर्जा का प्रवाह दूसरे में करवाने का प्रावधान किया जाता है । 

3.चिकित्सा: नाभि में तिल के तेल या हिंग का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में होता है। यह कब्ज़, अपच और गैस की समस्याओं का समाधान करता है। सामान्यतः बहुत छोटे बच्चों में जिनके भोजन की नली अभी भोजन को ग्रहण करने में। अभ्यस्त नहीं है , उनके नाभि में तेल इत्यादि लगाने की क्रिया की जाती है । अब तो बड़ी उम्र के लोगों को भी इस प्रकार की सलाह दी जाती है ।   

शिष्य: तो गुरुजी, आयुर्वेद नाभि को केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि ऊर्जा केंद्र भी मानता है?

योगी अनूप: हाँ, आयुर्वेद में नाभि को प्राणशक्ति का सूक्ष्म केंद्र भी माना गया है। व्यावहारिक रूप से ऐसा कुछ भी दिखता किंतु इस स्थान को बेहतर करने पर व्यक्ति में परिवर्तन के लक्षण कुछ ही पलों में साफ़ दिखायी देता है । ध्यान दें आयुर्वेद एक चिकित्सीय पद्दति होने के साथ साथ मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव के बारे में भी बात करती है । 

योग और नाभि केंद्र

शिष्य: योग के अनुसार नाभि केंद्र कैसे महत्वपूर्ण है?

योगी अनूप: योग में नाभि को मणिपुर चक्र कहा गया है। मस्तिष्क में स्थित नाभि का हिस्सा बहुत महत्वपूर्ण होता है । यदि परिस्थितियों से समन्वय बनाने की क्षमता अच्छी होती है तो नाभि केंद्र बहुत अच्छी तरह से कार्य करता है और यदि नाभि केंद्र अच्छी तरह से कार्य करता है तब मस्तिष्क की क्षमता घटने नहीं पाती है । ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । 

•मणिपुर चक्र: यह शरीर का तीसरा चक्र है, जो नाभि के ठीक पीछे स्थित होता है। इसे “ऊर्जा का भंडार” कहा जाता है। यह हमारे आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और पाचन को नियंत्रित करता है। इसे मैं एक प्रकार से लिवर व यकृत ही मानता हूँ जिसे अप्रत्यक्ष रूप में जिगर कहते हैं । 

• योगासन: भुजंगासन, धनुरासन और पवनमुक्तासन, सुप्त वज्रासन, रिचार्जिंग, कुर्सी आसन ताड़ासन जैसे योगासन नाभि केंद्र को मजबूत करते हैं और शरीर की आंतरिक ऊर्जा को सक्रिय करते हैं। 

• प्राणायाम: नाड़ी शोधन और कपालभाति प्राणायाम से मणिपुर चक्र की ऊर्जा जागृत होती है, जिससे पाचन, रक्त संचार और मानसिक संतुलन बेहतर होता है। किंतु कपालभाती का अभ्यास उन रोगियों के लिए वर्जित है जिनमें धारण व नाभि के असंतुलन जैसी कोई समस्या है । यदि पाचन और निष्कासन में कुछ समस्या अधिक है तो कपालभाती के अभ्यास से बचें व किसी अनुभवी गुरु के निर्देशन में करें । 

अध्यात्म और नाभि केंद्र

शिष्य: गुरुजी, अध्यात्म में नाभि केंद्र का क्या महत्व है?

योगी अनूप: जैसे देह की स्थिरता के लिए देह के मध्य भाग नाभि का महत्व साबित होता है वैसे ही आध्यात्म में इस पूरे देह और आत्मा के स्वास्थ्य के लिए स्वयं में स्थिर होना पड़ता है । आध्यात्म में सकारात्मक और नकारात्मक विचारों से परे हटकर जब व्यवहार में जीने का प्रयत्न करते हैं तब उसका नाभि पर सबसे अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है । जैसे ध्यान में विचारों को स्थिर करके पेट के मध्य हिस्से पर दुष्प्रभाव देना बंद कर देते हैं । और साथ साथ गहन निद्रा से भी नाभि पर बहुत अच्छा प्रभाव होता देखा गया है । मेरे अपने अनुभव में ध्यान और गहन निद्रा में नाभि का क्षेत्र सबसे अधिक शांत और ऊर्जावान होता है । उसकी ऊर्जा अक्षय रहती है । यह एक गहरा रहस्य है , किसी अनुभवी सिद्ध गुरु से ही वार्तालाप के दौरान समझने योग्य है । 

  1. जीवन ऊर्जा: जीवन ऊर्जा का मूल स्रोत वही है जहाँ पर ऐक्षिक सीमायें समाप्त हो जाती हैं । सभी इन्द्रियों के स्थिर और गहन शांत होने पर नाभि की प्राण ऊर्जा सबसे अधिक प्रकाशमान होती अहि । पाचन और निष्कासन सबसे अधिक शक्तिशाली होता है । प्राचीन ग्रंथों में इसे “प्राण का आधार” कहा गया है।और यह किसी क्रिया के द्वारा प्राप्य नहीं हो सकती है यह तो अक्रिया के माध्यम से प्राप्त होती है । 
  2. संतुलन और ध्यान: ध्यान की गहराई में नाभि के स्थान से स्वयं के द्वारा खिंचाव को समाप्त करने से नाभि स्वतः ही स्वयं में प्रकाशमान हो उठती है । उसे किसी को ऊर्जावान बनाने की आवश्यकता नहीं है , उसे तो मन और इन्द्रिय से ढीला करने की आवश्यकता है । 
  3. सुरक्षा का केंद्र: अध्यात्म में कहा गया है कि यदि मन और इन्द्रियाँ संतुलित है तो नाभि संतुलित स्वतः ही संतुलित और ऊर्जावान रहती है । 

शिष्य: तो क्या नाभि केंद्र पर ध्यान एकाग्र करने का भी एक महत्वपूर्ण लाभ होता है ? 

योगी अनूप: अवश्य हो सकता है किंतु मैंने इससे हानि अधिक देखी है । वह इसलिए कि जब व्यक्ति किसी भी स्थान पर एकाग्र होता है तो वह अधिक चिंतनशील हो उठता है , और साथ साथ उग्रता भी देखी जा सकती अहि । इसलिए ध्यान में एकाग्रता को किसी स्थान पर जबरन लगाने से कहीं अधिक अच्छा है कि वह स्वयं को शांत और स्थिर करने में लगाएं , नाभि स्वयं को स्वतः ही ठीक कर लेगी । देह के इस मध्य भाग में यह शक्ति होती है । यही स्वभाव यकृत ,जिगर व लीवर को भी प्राप्त हुआ है । लिवर को ढील और तनावरहित कर दो लिवर स्वतः ही स्वयं को ठीक कर लेता है । लिवर को यह ज्ञान नाभि से ही प्राप्त है । 

आधुनिक विज्ञान और नाभि केंद्र

शिष्य: गुरुजी, क्या नाभि के महत्त्व को आधुनिक विज्ञान भी मानता है?

योगी अनूप: विज्ञान के अनुसार नाभि क्षेत्र व सोलर प्लेक्सस (Solar Plexus) का अपना महत्व होता है किंतु योग आयुर्वेद में वर्णित व्याख्याओं से उसका तालमेल बहुत अधिक नहीं है । उसके अनुसार नाभि में असंतुलन जैसी कोई चीज नहीं होती है । क्योंकि नाभि के शल्य चिकित्सा के मध्यम से निकाल देने पर भी जीवन रहता है । 

1.नर्वस सिस्टम: नाभि के पास स्थित Solar Plexus और Vagus Nerve का सीधा संबंध पाचन तंत्र और मस्तिष्क से है।

2.पाचन और तनाव: वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि मानसिक तनाव से नाभि क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है, जिससे पाचन तंत्र कमजोर होता है।

3.गर्भावस्था और पोषण: आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि नाभि (umbilical cord) के माध्यम से बच्चे को जीवन के लिए आवश्यक पोषण मिलता है।

शिष्य: तो गुरुजी, नाभि केंद्र वास्तव में विज्ञान और अध्यात्म दोनों में महत्वपूर्ण है। क्या इसका संतुलन संभव है?

योगी अनूप: बिल्कुल! योग, आयुर्वेद और ध्यान के माध्यम से नाभि केंद्र का संतुलन स्थापित किया जा सकता है। मैंने सिर्फ योग, प्राणायाम और ध्यान की अनेक विषयों के माध्यम से नाभि अर्थात पेट के मध्य क्षेत्र को बेहतर करके अनेकों रोगों को ठीक किया है । यहाँ तक कि फैटी लिवर को भी स्वस्थ किया है । जब कि आधुनिक चिकित्सा शर्त उन सभी रोगियों को यह कहकर छोड़ दिया था कि तुम्हें कोई चिन्हित रोग नहीं है और तुम्हें मनोवैज्ञानिकों का सहयोग लेना चाहिए । मैंने लगभग बीस हज़ार से भी अधिक लोगों पर नाभि के क्षेत्र की बेहतरी पर कार्य किया । 

Recent Blog

Copyright - by Yogi Anoop Academy