कुछ ऐसे भावुक स्वभाव के लोग होते हैं जिनकी इंद्रियाँ बहुत शीघ्रता से किसी भी अनुकूल वस्तु को लत के रूप आदत बना लेती हैं । विशेष रूप से आँखो के माध्यम से रूप और सौंदर्य तथा जिह्वा के माध्यम से स्वाद की लत लग जाती है ।
पाँचो इंद्रियों में आँख एक ऐसी इंद्रिय है जो समस्त दृश्यों रूप और सौंदर्य को ग्रहण करती है । सामान्य व बालक मस्तिष्क के लिए व उसकी समझ बढ़ाने के लिए सबसे आसान तरीक़ा होता है । इसी के माध्यम से ज़्यादातर एकाग्रता बढ़ाया जाता है । यहाँ तक कि हठ एवं भक्ति योग में रूप एवं सौंदर्य के माध्यम से ही एकाग्रता बढ़ाने का तरीक़ा सिखाया जाता है । किंतु यह एक उम्र की सीमा तक ही सीमित होना चाहिए ।
मेरे अपने ध्यान के आनुभविक अनुसंधान में मन जितना अधिक रूप और सौंदर्य ग्रहण करता है उतना ही उसकी स्वाद इंद्रियाँ तीव्र मीठे व खट्टे की ओर आकर्षित होती हैं ।
वह बार बार खाने की ओर आकर्षित होता है । उसकी शारीरिक और मस्तिष्क की ऊर्जा का एक मात्र श्रोत स्वाद के माध्यम से भोजन ही रह जाता है । और इस प्रकार की लत सेक्शूअल फ़्रस्ट्रेशन भी पैदा करने लगता है ।
99 फ़ीसदी बच्चों का मन मस्तिष्क रूप और सौंदर्य तक ही सीमित होता है और उन्हें स्वाद में मीठे और खट्टे ही सर्वाधिक पसंद होता हैं । इसी प्रकार भक्ति एवं हठ योग से प्रभावित साधकों में भी रूप, सौंदर्य और स्वाद इंद्रियाँ अति सक्रिय होती हैं ।
मैंने अनुभव किया है कि व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को एक सीमा तक ही यह विकसित करता है । किंतु यह माध्यम मन मस्तिष्क को बहुत उन्नत नहीं कर सकता है । भविष्य में यह अवसाद और तनाव का सबसे बड़ा कारण बन बैठता है । पाचन निस्काशन इत्यादि सब ख़राब कर देता है ।
इसलिए मेरे अनुभव में ध्यान के अंदर सबसे अधिक आँखो को ही ढीला करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए । यह आँखो को ढीला करने के कुछ उपाय बतलाए जा रहे हैं जिनका अभ्यास हर एक साधक को अवश्य करना चाहिए ।
आँखों को ढीला करने के कुछ उपाय -
1-आँखो को बंद करके उसे ढीली करने का प्रयत्न करें ।
2-स्वाँस को अनुभव करके आँखो को ढीला करने का प्रयत्न कर सकते हैं ।
3-जबड़ों को थोड़ा दबाकर भी आँखों की मांशपेशियों को ढीला किया जा सकता है ।
4- यहाँ तक कि बंद आँखों की पुतलियों को धीरे धीरे ऊपर नीचे करके ढीला करने का प्रयत्न करें ।
ध्यान में जब भी बैठे सबसे पहले आँखों को ढीला करने का प्रयत्न करें । जैसे ही आँखे ढीली होनी शुरू होंगी वैसे मस्तिष्क के अंदर दृश्यों का बहाव कम होने लगेगा । ये सभी दृश्य जो मन और मस्तिष्क में चल रहे होते हैं उनका बहाव जितना तेज और धारदार होता है उतना ही तनाव होता है , उतना ही मस्तिष्क क्षतिग्रस्त होता है किंतु जैसे ही आँखो की मांसपेशियों को ढीला करना प्रारम्भ करते है वैसे दृश्यों का मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव कम व बंद हो जाता है ।
ध्यान दें बहुत चलायमान दृश्य के अंदर जाने पर मन और इन आँखों को चलायमान दृश्य को देखने का मन करता है । स्टिल व स्थिर फ़ोटो देखने का मन नहीं करता है । हमेशा मूवी व चलायमान दृश्य को देखने का मन करता है । यहाँ तक कि पढ़ने का भी मन नहीं करता है । क्योंकि पढ़ने में किताब स्थिर है , उसमें कोई भी गति नहीं है , इसलिए आँखों को धीरे धीरे गति करवानी पड़ती है । किंतु जब मूवी को देखते हैं तब आपकी आँखों की गति का निर्धारण उस फ़िल्म पर निर्भर करता है ।
5- योग निद्रा का अभ्यास करते हुए स्वाँस को छोड़ते समय आँखो की मांसपेशियों को ढीला करने का प्रयत्न करें । यद्यपि प्रयत्न शब्द यहाँ पर ग़लत है । किसी भी अंग को ढीला करने में किसी भी प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती है , बस गुरु के साथ उसे समझ कर सीखने की आवश्यकता होती है ।
6- अपने जिह्वा को तालु से थोड़ी देर के लिए चिपकाने की भी आवश्यकता होती है । इससे स्वादइंद्रियाँ शांत होती हैं और मन मस्तिष्क स्थिर होता है ।
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