डायाफ्राम के तनाव से एंजाइटी
शिष्य: जब डायाफ्राम रिलैक्स होता है, तो एंज़ाइटी बढ़ने लगती है!
योगी अनूप: यह सुनने में अजीब लगता है और सत्य के विपरीत प्रतीत होता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि जब डायाफ्राम तनाव में होता है, तब एंज़ाइटी बढ़ती है। या यूँ कहें कि जब एंज़ाइटी बढ़ती है, तब डायाफ्राम भी तनावग्रस्त हो जाता है।
आपकी समस्या यह है कि जब आपका डायाफ्राम तनाव में होता है, तो आप स्वयं को ऊर्जावान महसूस करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तनाव की स्थिति में इन्द्रियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं और शरीर में एक खिंचाव पैदा होता है। इसके साथ ही कुछ विशेष प्रकार के तनाव उत्प्रेरित करने वाले रसायन भी निर्मित होते हैं। यही रसायन और तनाव आपको ऊर्जावान महसूस कराते हैं। रक्त संचार की वृद्धि भी इस अनुभव को और अधिक प्रबल बना सकती है।
लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि कोई भी बच्चा हाइपर (अत्यधिक सक्रिय) बिना किसी कारण के नहीं होता। इसके पीछे हमेशा कोई न कोई अव्यक्त भय (subconscious fear) छिपा होता है। इसी भय को संतुलित करने के लिए अवचेतन मन कहीं न कहीं मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न करता है।
यही अव्यक्त भय स्मृति में गहराई से अंकित हो जाता है और धीरे-धीरे मांसपेशीय स्मृति (muscle memory) का हिस्सा बन जाता है।
उदाहरण: कुछ बच्चे नाखून चबाने या अंगूठा चूसने की आदत विकसित कर लेते हैं। यह आदत सोते समय भी जारी रहती है, क्योंकि यह अब उनके मस्तिष्क में गहराई तक बस चुकी होती है। धीरे-धीरे, यह आदत शरीर में एक निश्चित प्रकार के रसायन उत्पन्न करने लगती है। कुछ वर्षों में यह रसायन स्वतः उत्पन्न होने लगते हैं, जिससे मांसपेशियों और विशेष रूप से डायाफ्राम में तनाव आ जाता है।
अब एक महत्वपूर्ण बात समझें – जब शरीर में उत्पन्न रसायनों का स्तर कम होने लगता है, तो व्यक्ति को एक असहज अनुभव होता है। यह अनुभव व्यक्ति को पुनः वही आदत दोहराने के लिए प्रेरित करता है, जिससे पुनः वही रसायन उत्पन्न होते हैं। यह चक्र जारी रहता है और व्यक्ति मानसिक रूप से इस पर निर्भर हो जाता है।
ऊर्जावान स्थिति से अचानक गिरावट और मानसिक अस्थिरता
कई बार, जब हम अत्यधिक ऊर्जावान स्थिति से अचानक सामान्य स्थिति में आते हैं, तो हमें ऐसा लगता है जैसे सब कुछ समाप्त हो गया हो। इस उतार-चढ़ाव में हमारा अवलोकन (observation) स्थिर नहीं रह पाता।
लेकिन यदि गहराई से देखा जाए, तो डायाफ्राम का ढीला और सहज होना ही मस्तिष्क को स्थिरता और शांति प्रदान करता है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि हम निष्क्रिय हो जाएँ।
• प्राचीन ऋषि पहले रिलैक्सेशन के माध्यम से खोज करते थे।
• उसी प्रकार, हमें भी अपने कार्यों के साथ रिलैक्सेशन को बनाए रखना चाहिए।
• यदि हम रिलैक्सेशन को सही ढंग से समझें और उसका अभ्यास करें, तो हम अपने जीवन में अधिक संतुलित और शांत रह सकते हैं।
डायाफ्राम को संतुलित करने के उपाय
चिकित्सा विज्ञान में, डायाफ्राम के तनाव को कम करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। मेरे अनुभव के अनुसार, योग और प्राणायाम की विधियाँ इस समस्या का स्थायी समाधान प्रदान कर सकती हैं। इनसे मानसिक ठहराव प्राप्त करना भी सरल हो जाता है।
लेकिन यदि डायाफ्राम में तनाव की आदत लग जाए, तो अचानक उसे समाप्त करना कठिन हो सकता है।
• कुछ लोग जिम जाकर अत्यधिक मांसपेशीय खिंचाव उत्पन्न करते हैं । किंतु ध्यान दें, अत्यधिक खिंचाव से मानसिक समस्याओं के बढ़ने की संभावना भी रहती है। व कुछ लोगों को कुछ ऐसी दवाइयाँ का सेवन करवाया जाता है जिससे तनाव समाप्त हो जाय।
डायाफ्राम का तनाव और मानसिक स्थिति परस्पर गहराई से जुड़े हुए हैं। यदि हम सही प्रकार से रिलैक्सेशन और योग का अभ्यास करें, तो हम अपने मस्तिष्क और शरीर के बीच संतुलन स्थापित कर सकते हैं। जब डायाफ्राम संतुलित रहेगा, तो मन भी स्थिर और शांत रहेगा।
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