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चंचल मन का रोग

3 years ago By Yogi Anoop

चंचल मन का रोग 

किसी भी प्रश्न से सीधे उत्तर पाने की आशा ही मन की चंचल अवस्था को दर्शाता है । चंचल मन सीधा सीधा उत्तर पाने के लिए बेताब होता है,  उसे हाँ और ना में ही उत्तर चाहिए होता है । उन्हें ऐसा लगता है कि प्रश्न के उत्तर मिलते ही जीवन में सम्पूर्णता आ जाएगी, जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा । यदि उसे जल्द समाधान नहीं मिलता तो मीठे और तले भुने भोजन को खा कर थोड़ी देर के लिए शांत रहने का असफल प्रयास करता है । 

 

मुझसे कई लोग प्रश्न पूछते हैं कि मुझे बताइए कि वह (ईश्वर) कहाँ पर बैठा है ? 

बजाय कि ये जानने कि ईश्वर कौन है ?, उसका स्वरूप क्या है ?   उन्हें इस बात को जानना है कि वह रहता कहाँ है । ऐसा लगता है यदि वो ईश्वर के रहने के स्थान को पा जाएँगे तो उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा । 


सत्य है इस प्रकार के प्रश्नों का कोई सीधा उत्तर होता ही नहीं , और जो भी उत्तर देता है वह उत्तर देने वाला भी पूछने वाले के ही समान अधकचरा होता है । 

किंतु इतना तो सत्य है कि इस प्रश्न के द्वारा आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कोई एक विशेष स्थान ढूँढ रहा है । वह उस अनंत सत्ता को समझने के बजाय आँखों से बस देखना चाहता हैं । वह किसी ऐसे क्षीर सागर की तलाश में है जिसमें विष्णु भगवान बैठे हैं । 

मन के अंदर एक विशेष प्रतिमूर्ति बैठी हुई होती है , उसी को प्राप्त करने की जद्दोजहद में लगे हैं । 


एक शिष्य ने मुझसे पूँछा कि क्या आपको आत्म ज्ञान हो गया है ? 

मैंने उससे पूँछा कि आपका ‘आत्मा’ से आपका क्या तात्पर्य है ? 

उसने कहा “बजाय उत्तर के आप मुझसे प्रश्न कर रहे हैं !” 

उसको एक विशेष उत्तर ‘हाँ’ और ‘नहीं’ में से किसी एक की आशा थी । यदि मैं हाँ और ना में उत्तर देता तो उससे उसके आत्मिक विकास में कोई उन्नति होने वाली नहीं थी । 

यदि मैं सिर्फ़ हाँ और ना में उत्तर देता, तो उसकी गहराई और मंसा का अंदाज़ा नहीं लगा पाता, और जो भी मैं हाँ और ना में उत्तर देता वो उसके आत्म विकास में सहायक न होकर उसे और भ्रमित कर देता । 

एक गुरु को प्रश्न कर्ता के मस्तिष्क को जगाने की कोशिश करनी चाहिए, उसे उलझाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि उसमें चिंतन की प्रकिया जागृत हो । 


एक अन्य शिष्य ने पूछा कि क्या आपको इतनी सिद्धि हो गयी है कि किसी स्त्री से भविष्य में आकर्षित नहीं होंगे ? 

उसके इस प्रश्न में ही उसका स्वभाव छिपा था , वह भविष्य के प्रति भयभीत था । । 

मेरा उत्तर था - 

मैं भविष्य दृष्टा नहीं हूँ , मुझे भविष्य का कोई अंदाज़ा नहीं है ।  मुझसे वर्तमान के बारे में ही अनुभव है , आप उसी से सम्बंधित प्रश्न  पूछ सकते हैं । 

इस उत्तर ने उसके अंदर घबराहट पैदा कर दिया , उसे किसी एक विशेष उत्तर की आशा थी जो न मिला । 

उन्होंने फिर से दोबारा प्रश्न किया - 

नहीं मैं जानना चाहता हूँ कि आप आकर्षित होंगे या नहीं । 

मैंने फिर से एक उनको निराश कर देने वाला उत्तर दिया -

मैंने कहा कि यदि मैं ये कहता हूँ कि भविष्य में मैं आकर्षित नहीं हूँगा तो क्या आपके वर्तमान जीवन में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाएगा । यदि मैं भविष्य में किसी स्त्री से आकर्षित होता हूँ अथवा नहीं तो इसका आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा । मुझे ये बताए ।

क्या आपकी समस्या समाप्त हो जाएगी ! क्या आपका ब्रह्मचर्य सिद्ध हो जाएगा । 

उनके कुछ और न कहने पर अंत में मैंने कहा -


“क्या कोई भी कुशल ड्राइवर यह कह सकता है कि उसका भविष्य में कभी भी accident नहीं होगा।” कोई भी अनुभवी गुरु भविष्य के बारे में बात नहीं करेगा । उससे वर्तमान पूछो क्योंकि वह उसी में जीता है । उसने वर्तमान में जीने की दक्षता हासिल की हुई है । 


मेरा अनुभव है कि चंचल मन वाले व्यक्तियों के प्रश्न का सामान्य सा उत्तर कभी नहीं देना चाहिए । उसको ऐसे उत्तर मिलना चाहिए जिससे उसे समझने में मेहनत करना पड़े । reasoning पर ज़ोर लगाना पड़े । चिंतन की प्रक्रिया के बढ़ने से ही उनके मानसिक समस्याओं का समाधान हो सकता है । 

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