सुबह उठने के बारे भारतीय संस्कृति में तो अथाह बातें भारी पड़ी है कि सुबह उठना मन और शरीर के लिए सर्वोत्तम है । यहाँ तक कि आधुनिक विज्ञान भी सुबह उठने से अल्फा बीटा और गामा जैसी किरणों के महत्व को समझाता हुआ दिखता है ।
धार्मिक लोग इसके महत्व को भी कुछ और गंभीर तरीक़े से समझाते हुए मिलते हैं । उनके अनुसार परमात्मा से मिलने का सबसे अच्छा समय यही है । वह इसलिए कि ब्रह्मामुहूर्त में मन की अवस्था बहुत अधिक शांत होती है , वह विचारों और कल्पनाओं से बहुत घिरा नहीं होता है ।
इसीलिए आध्यात्मिक साधकों का यही कहना होता है कि सुबह उठने पर जो भी पढ़ लिया जाय वह अमिट हो जाता है । बच्चों को चार बजे पढ़ने को इसीलिए प्रेरित किया जाता है, जबकि सत्य यह है बहुत कम लोग ही ऐसा कर पाते हैं ।
यहाँ तक जो दिन में 9 बजे उठते हैं वे भी सुबह उठने पर बहुत गंभीर प्रवचन देते हुए पाए जाते हैं । कुछ लोग ही नहीं मैं भी बचपन में तो पहले सुबह उठता था किंतु पुनः 11 सुबह बजे दिन में थक कर सोने को मजबूर होना पड़ता था ।
यदि मैं अपने अनुभव को यहाँ रखूँ तो बेहतर होगा -
मैं हमेशा कहता हूँ सुबह उठने के लिए बहुत ज़ोर ज़बरज़स्ती मत करो , अपनी जान मत मारो , अपनी इक्षा शक्ति को अनावश्यक सुबह उठने में लगाने से कहीं अधिक है अपने लक्ष्य पर ध्यान देना बेहतर होता है अन्यथा ये सभी आपकी असफल कोशिशें होंगी । उठने की प्रक्रिया में भले ही थोड़े दिन सफलता मिल जाये किंतु कुछ दिनों के बाद परिणाम परिणाम फिर से वही ढाक के तीन पात ही हो कर रह जाता है ।
भविष्य में और जीवन भर आप सिर्फ़ सपने में ही सोचते रहोगे कि सुबह उठना कितना अच्छा होता है ।
कोई कोई तो इतना हिसाब किताब रखते हैं कि ब्रह्मूहुर्त के समय सुबह उठने पर कभी भी हार्ट अटैक नहीं होता है । ऐसे लोगों की भी भी केस स्टडी बहुत ही भयानक होती है- कुछ वैसा ही जैसे कि बिल्ली के रास्ता काटने पर बहुत ही अशुभ होता है । ऐसे लोग बिल्ली के रास्ता काटने पर अपनी यात्रा को कुछ देर के लिए स्थगित कर देते हैं ।
हिंदुस्तानी लोगों की केस स्टडी तो बहुत ही भयानक होतीं हैं । ऐसी कि बिना केस के ही स्टडी कर लेते हैं । किसी दूसरे की केस स्टडी को बोलते बोलते मन में एक आदत बन जाती है , कोई वस्तु नहीं है किंतु उसके बारे में पूर्ण ज्ञान है । किसी व्यक्ति के बारे में कोई अता पता नहीं होता है फिर भी उसके बारे में ऐसे बोलते हैं कि वे बातें शायद उस व्यक्ति को स्वयं भी मालूम न हो ।
मैं अनुभव से कहता हूँ , रात को बेहतर करो । रात जितनी बेहतर होगी, सुबह उतनी ही बेहतर होती जाएगी । सामान्यतः व्यक्ति सुबह को बेहतर करने की सोचता , मैं तो कहता हूँ सुबह परिणाम है रात का , यदि रात ठीक न हो सका तो कितना भी कर लो सुबह ठीक न हो सकेगा । 8 बजे रात के बाद स्वयं को शांत करने के लिए जो कर सको वो करो । रात में आँखों के भोजन को कम से कम कर दो । TV व सोशल साइट्स पर प्रतिबंध लगाओ , कोई भी प्राइम टाइम नहीं देखना है , और न ही आँखों को स्क्रीन दिखाते दिखाते थकाना है ।
रात में 8 बजे के बाद जिह्वा पर कोई भी बोझ मत डालो । सत्य यह है कि रात में आपका अपना प्राइम टाइम आप स्वयं ही हों , कोई टीवी वाला होना नहीं चाहिए । यदि आँखों को हिलाने डुलाने का बहुत मन ही कर रहा हो तो कोई ऐसी किताब पढ़ लो जो आपको स्वयं में समझने का प्रयत्न करवाए । यह सत्य है कि रात में मन बहुत काल्पनिक हो उठता है, और मूर्ख लोग उसे क्रिएटिव समझने की भूल करते हैं । वस्तुतः वह क्रिएटिविटी नहीं । इसीलिए रात में मन जब काल्पनिक हो तो उसे ऐसे कार्यों में डाले जिसमें मानसिक मेहनत लगे । मन मेहनत करने से डरता है , सच मानो वह सो जाएगा । ज़्यादातर मन रिवर्स साइकोलॉजी के शिकार होते हैं ।
मेरी पत्नी कहतीं हैं कि बैठ जाओं , खड़े मत रहो , बैठ जाओ , मैं नहीं बैठता , दोबारा तिबारा बोलती हैं फिर भी मैं नहीं बैठता ।
जब वो बोलना बंद कर देती है तब मैं बैठ जाता हूँ ।
आँखो को देखने की आदत है, उसे किताब दिखाओ , ध्यान दो वो किताब जिसमें व्यवहार सिखाया जाता है न कि उपन्यास , फिर देखो कुछ ही मिनटों के बाद नींद कैसे भाग कर आती है आपके पास ।
मन रात में बहुत गहरा अनुभव चाहता है क्योंकि रात में चन्द्रमा और मन का बहुत घनिष्ठ संबंध होता है । यदि उसे गहराई का निभाव नहीं मिला तो वह कल्पनाओं की उड़ान भरकर अनुभव इकट्ठा करना चाहता है । यद्यपि उसमें वह बहुत बुरा फँस जाता है ।
उसी तरह मन को जब ज़बरज़स्ती करने लगते हो तो वह सोने की तैयारी कर लेता है । प्रयोग करके देखो
एक स्टूडेंट को 28 वर्षों से नींद की समस्या थी , रात में मृत्यु का भय सताने के करण नींद में जाना संभव न था ,
मैंने कहा कि प्राणायाम करो , तपाक से उन्होंने कहा कि प्राणायाम 30 मिनट
Copyright - by Yogi Anoop Academy