जीवन के व्यवहार का मूल सत्य शून्य में न होकर बिंदु में छिपा है ।
बिंदु का अर्थ है रुक जाना , अब इसके आगे कुछ भी नहीं है । बाह्य जगत अर्थात् इस संसार का अंतिम सत्य यही बिंदु है , इसीलिए जब आप कोई भी एक वाक्य या sentence लिखते हैं तो उसमें full stop होता है , इसका अर्थ है कि रुक जाना , यदि रुकोगे नहीं तो उस वाक्य के अर्थ को समझोगे नहीं ।
और ध्यान दें इस बिंदु से कोई छोटा हो नहीं सकता , यदि होगा तो वो भी एक बिंदु होगा , इसीलिए ध्यान में बिंदु को इस जड़ जगत की प्रथम और अंतिम कड़ी माना जाता है । यह एक ही, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता , क्योंकि इसी बिंदु पर आकर सारे परिवर्तन रुक जाते है हैं ।
जितने भी अक्षर हैं वे सभी के सभी बिंदु से शुरू होते हैं और बिंदु पर समाप्त हो जाते हैं । अर्थात् संसार बिंदु पर समाप्त होता है , ध्यान दें वह शून्य में समाप्त नहीं होता है ।
जैसे राम शब्द लिखते हो , जब शुरू करते हो तब पेन के डॉट से ही शुरू करते हो, फिर राम शब्द लिखते हो ।
किसी भी वस्तु को बनाने के लिए एक छोटा सा वस्तु पहले तो लेते ही हो , फिर उसके बाद वो बड़ा बनता है , और यदि उस बड़े वस्तु को तोड़ दो और उसकी अंतिम अवस्था तक तोड़ते रहो तो वही एक बिंदु मिलेगा ।
इसीलिए ये बिंदु अमर है , मरता नहीं ।
यदि इस शरीर में देखो तो इसमें कई ऐसे बिंदु है , डॉट हैं जो जिनसे इस पूरी शरीर का निर्माण हुआ । यदि उस स्थान पर ध्यान केंद्रित कर लें तो शरीर को लाभ मिल ही जाएगा साथ साथ मन जो सबसे बदमाश और असंतुष्ट है, उसको शांत किया जा सकता है ।
योग में उस पूर्ण सत्य को जानने के लिए देह के लिए आसन बनाए गए , ताकि वो शरीर के निर्माण की अवस्था तक पहुँच जाय । इसलिए रीढ़ की हड्डी के अभ्यास की बात गयी । क्योंकि शरीर के अन्य सभी अंग रीढ़ से ही संचालित होते हैं , तो योगियों ने कहा कि रीढ़ से सम्बंधित अभ्यास करके रीढ़ अनुभव करो ।
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