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बिना खाये ही,मन को कैसे करें संतुष्ट

1 year ago By Yogi Anoop

गोल-गप्पे बिना खाये ही , मन को कैसे करें संतुष्ट । 

पीलेधारी गुरु जी समाधान बता रहे थे । उनका कहना था कि जब- जब गोल-गप्पे खाने की इक्षा भयंकर होने लग जाये तो मन के अंदर अंतरतम में उस गोल गप्पे को खाओ फिर देखो आपके अंदर लार इतनी अधिक पैदा होगी कि आपकी खाने की इक्षा ही समाप्त हो जाएगी ।”


बहुत बड़े विज्ञान की बात कर रहे थे, उनका कहना था कि अंतरतम में भोजन की कल्पना गहन रूप से करने पर मन की भोजन के प्रति इक्षा समाप्त हो जाती है । 

यदि किसी भी व्यक्ति को व्यंजन खाने की इक्षा हो तो उसे यही करना चाहिए । यदि किसी भी व्यक्ति को मीट खाने की इक्षा जागृत हो जाये तो उसे बस इसी वैज्ञानिक तकनीक का अनुसरण करना चाहिए । उसे मीट को बिना खाये ही मीट के सारे गुण मिल जाएँगे । वह इसलिए कि मीट कि कल्पना करते ही आपकी स्मृति में मीट से संबंधित अनुभव पहले से ही मौजूद है, वह जागृत हो उठेगा और आप के अंदर लार पैदा होने लगेगा और आपको मीट से संबंधित सारे प्रोटीन और फैट जैसे ऊर्जाएँ स्वतः ही प्राप्त हो जाएगी । 

मैं तो कहता हूँ यदि ऐसे ही इक्षाओं और आवश्यकताओं को पूरा करना हो तो सेक्स की समस्या भी समाप्त ही हो जाएगी । केवल अंतरतम में गहन रूप से सेक्स करो और आप संतुष्ट हो जाएँगे । मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि हो सकता है इस क्रिया से बच्चे भी पैदा हो ना जायें । 


उस महान गुरु को यह पता ही नहीं कि ख़ाली पेट भोजन की गहन कल्पना करने से जितनी अधिक ऐसिडिटी होती है और अन्य किसी से नहीं हो सकती है ।  आंतरिक अंगों पर इतना अधिक फ्रस्ट्रेशन का स्तर बढ़ता हैं कि उतना तो खाने के बाद भी नहीं होगा । मैं तो कहता हूँ कि गोल गप्पा खा लो , उतनी अधिक ऐसिडिटी नहीं होगी किंतु आधा घंटे उसकी कल्पना में लार पैदा करोगे तो वह सबसे अधिक ख़तरनाक है । 

किंतु नहीं हमको तो प्रवचन देना है , और शिष्यों को भी ऐसी वाहियात प्रवचनों पर यक़ीन कर प्रयोग करना है । यह बहुत आसान है । 

मैं अपनी एनालिसिस के आधार पर यह कहता हूँ कि ऐसे ही लोग चलते फिरते सेक्स की कल्पना में अपने मन को व्यस्त रखते हैं और अंदर ही अंदर हार्मोनल सेक्रेशन करवाते रहते हैं ।

इन्हें पता ही नहीं कि ये कल्पनाएँ उन्हें भविष्य में पागल कुत्ता बना देगी । उन्हें मालूम नहीं कि इस कल्पना से बच्चे पैदा नहीं होंगे । 


इन्हें पता ही नहीं कि मस्तिष्क कि अनंत कोशिकाओं में कौन से विचारों को डाल रहे हो । 

मैं कहता हूँ , भोजन से संबंधित अनेकों व्यंजनों का चाहे जितना अंतरतम में कल्पना कर लो आप शांत नहीं हो सकते । आप उस भोजन के स्वाद को कल्पनाओं में ला सकते हो क्योंकि उसका अनुभव पहले किया जा चुका है किंतु वह अनुभव जो स्मृति से निकाला गया है वह शरीर में उसी प्रकार की प्रतिक्रिया भी देना प्रारंभ कर देगा । 

यदि पेट में भोजन नहीं है और पेट के अंदर उसी प्रकार की पाचन जैसी क्रिया होने लगे तो

तो पेट में अक्सर हो जाएगा । 

वह इसलिए क्योंकि पेट के अंदर भोजन की मात्रा कुछ भी नहीं है , और उसका स्वामी मन और मस्तिष्क में पाचन की क्रिया की शुरुआत हो गई है । मन मस्तिष्क में पाचन की क्रिया की शुरुआत होने पर पेट के अंदर पाचन की क्रिया चलने लगेगी । यही उसके अल्सर व घाव का करण बन जाएगा । 

मेरा स्वयं का अनुभव है कि पेट में होने वाला अल्सर व घाव तीखे व मसालेदार भोजन खाने से नहीं बल्कि ख़ाली पेट के रहने से और मन में भोजन की क्रिया चलने से होती है । 

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