व्यक्ति भयभीत तब होता है जब एड्रिनल ग्लैंड्स भय के रस पैदा करते हैं अथवा भयभीत तब होता है जब मन भयभीत होता है । एक कहता (Science) है दुख व भय का कारण adrenal ग्लैंड है तो दूसरा (ज्ञान योग) कहता है कि नहीं भय व असंतुलन का कारण मन है । एक adrinel ग्लैंड का इलाज करता है , यद्यपि उसके पास कोई और अन्य रास्ता भी नहीं है । दूसरा कहता (ज्ञान योग) है कि एड्रिनल ग्लैन्डस जड़ है उसको नही पता है कि शेर सामने खड़ा है पर मन चेतन उसको मालूम है कि शेर उसके सामने खड़ा इन्तजार कर रहा है खाने के लिये। एड्रिनल ग्लैन्डस असन्तुलित तभी होगा जब उसका नेता मन भयभीत हो जायेगा अपना सन्तुलन खो देगा । एक-दो माह के छोटे बच्चे के सामने शेर खड़ा कर दो तो, उसका ग्लैन्डस असन्तुलित नहीं होगा क्योंकि उसको पता ही नहीं कि शेर क्या चीज है ।
बाह्य साधन से कभी भी अन्दर के मूल का परिवर्तन हमेशा के लिये नहीं होता है जब कि अन्दर के परिवर्तन से बाह्य का परिवर्तन होता हैं । भय का मूल कारण ग्लैन्डस नहीं क्योंकि ग्लैन्डस से कहीं अधिक सूक्ष्म भाव व विचार होतें हैं। सर्वप्रथम मन में भय का विचार आता है फिर उसके बाद एड्रिनल ग्लैन्डस अस्वाभाविक होने लगते हैं । जब कि आज का विज्ञान उल्टा कहता है ।
वह कहता है कि पहले एड्रिनल ग्लैन्डस में विकार उत्पन्न होता है तत्पश्चात मन में भय उत्पन्न होता है । कितनी अजीब बात है । शेर सामने हो तो गुर्दे की ग्रन्थि से रस पैदा हो सकता है और शेर की कहानी सुनने मात्र से बच्चे डर जाते हैं।
मन में एक भाव पैदा होता है तत्पश्चात एड्रिनल ग्लैन्डस में विकार आता है और उसके बाद भय पैदा होता है । ध्यान, प्राणायाम और ज्ञान के माध्यम से आप अपने मन को इतना उर्जावान बना सकते हैं और उसकी प्रतिरोधक क्षमता इतना बढ़ा सकते हैं कि मन में भावों को manage करने की शक्ति आ जाय जिससे शरीर भी स्वस्थ रह सके और साथ-साथ आप पूर्ण स्वस्थ कहला सकें । स्वस्थ वही है जिसका मन और शरीर दोनों स्वस्थ हों । परिस्थितियां चाहे गलत हों या सही हों, दोनो का सामना सबसे पहले मन करता है फिर उसके बाद उसका अच्छा व गलत प्रभाव शरीर पर आता है। यदि मन की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ानी है तो ज्ञानात्मक ध्यान के माध्यम से स्वयं के जीवन चर्या में बदलाव लायें । किन्तु आज का मनुष्य कुछ ऐसी चीज चाहता है जिससे वह स्वस्थ भी हो जाए और गलत जीवन चर्या में बदलाव भी न करना पड़े ।
किन्तु इस सार्वभौमिक सत्य को कोई झुठला नहीं सकता कि मन मे परिवर्तन आवश्यक है और मन में परिवर्तन की इच्छा पर निर्भर करता है इसलिये हमारे पास कुछ ऐसे साधन होने चाहिये जो हमको हमारे अर्न्तमन की ओर ले जाय। इसमें ज्ञानात्मक ध्यान सबसे बड़ा सहायक हो सकता है।
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