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भोजन कितनी देर में करना चाहिए

3 months ago By Yogi Anoop

भोजन कितनी देर में करना चाहिए 

स्वादानुसार यदि आपको रसगुल्ला या किसी मीठे को खाने के लिए दिया जाये और उसके खाने के समय को निर्धारित करने के लिए कहा जाये अथवा यह पूँछा जाये कि उसे खाने में कितना समय लगेगा , तो उसकी सही टाइमिंग नहीं बताई जा सकती। अर्थात् भोजन करने की अवधि कितनी होनी चाहिए यह बता पाना अत्यंत कठिन है साथ साथ अतार्किक और अव्यावहारिक भी है । उसका समय तब तक है जब तक कि उस मीठे का स्वाद जीभ पर अच्छी तरह से अनुभव नहीं हो जाता , और साथ साथ इस प्रक्रिया में, जीभ पर रखें हुए भोजन के स्वाद का अनुभव भिन्न व्यक्तियों पर निर्भर करेगा । अर्थात् समय महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए , उसका स्वाद लेना महत्वपूर्ण रखता है । मेरे अनुभव-अनुसार तो यही भोजन का प्रमुख नियम है । क्योंकि भोजन करने में यह पूरी प्रक्रिया पर खड़ा उतरता है । स्वाद लेना , स्वाद लेने के बाद उसका स्वतः पाचन होना , और पाचन के बाद निष्कासन का स्वतः होना स्वाभाविक सा हो जाता है । 

जब कोई भी भोजन जीभ पर रखा जाता है तब  उसका संकेत मस्तिष्क में जाता है और उसी के बाद लार और हार्मोन्स का उत्पादन होता है। 

यही कारण है कि भोजन की प्रक्रिया शुरू होती है। यदि सलाइवा सही ढंग से उत्पन्न नहीं होता, तो भोजन का स्वाद ठीक से महसूस नहीं होता और पाचन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती। यह प्रक्रिया तभी होती है जब भोजन के स्वाद का संकेत मस्तिष्क को मिल जाए, जिसके बाद हार्मोन्स का स्राव होता है।

योग में इसको चिकित्सीय पद्धति के तौर पर देखा जाता है। आयुर्वेद के डॉक्टरों, योगियों और ऋषियों ने हमेशा कहा है कि भोजन को अधिक चबाकर और कंसंट्रेट करके खाया जाए। इससे न केवल स्वाद की गंभीरता का अनुभव होता है बल्कि स्वाद से मस्तिष्क को बहुत गहराई से संतुष्टि हो जाती है और भोजन की मात्रा कम हो जाती है ।

ज्यादा चबा कर, ध्यान केंद्रित करके भोजन का स्वाद लेकर खाएं। यह सभी प्रक्रियाएं इस बात का संकेत हैं कि भोजन को जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए। ऋषियों का कहना था कि भोजन को लंबे समय तक चबाने से ही भोजन के मूल स्वाद का अनुभव किया जा सकता है । यहाँ तक कि सूक्ष्म से सूक्ष्म स्वाद का भी अनुभव किया जा सकता है । जब हम स्वाद लेकर खाना खाते हैं, तो मस्तिष्क को समुचित मात्रा में संकेत मिलते हैं, जिससे उसे शरीर को क्रियात्मक करने में किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होती है । 

सही तरीके से चबाकर भोजन को टुकड़ों में विभाजित कर, सलाइवा के साथ मिलाकरके जब यह पेट में जाता है, तभी पाचन की प्रक्रिया सही से शुरू होती है। इसी तरह, पानी भी धीरे-धीरे पीना चाहिए न कि गड़गड़ाकर तेजी से।

आप 20-30 सेकंड में आधा बोतल पानी पी लेते हैं। इसमें भी यदि आप सलाइवा को मिक्स नहीं करते, तो प्रयोग करके देखें। अगर पानी पाइन में इतना समय लगता है तो भोजन को कितनी देर में खाना चाहिए, यह एक बहुत बड़ा विषय है। यह विषय जल्दबाज़ी में नहीं होना चाहिए। जैसे कि भोजन जब बिना सलाइवा से मिले पेट में जाएगा, तो पाचन में दोष पैदा होगा और पेट के अंदर गुड़-गुड़ की आवाज आएगी। यह आवाज इसलिए आती है क्योंकि आपने पानी को सलाइवा से ठीक से मिक्स नहीं किया।

यदि पानी पीते समय भी आप उसे सलाइवा में मिक्स करें और थोड़ी देर तक मुंह में रखें, तो वह एसिडिक नहीं होगा। इसलिए आयुर्वेद में कहा गया है कि भोजन को इतना चबाएं कि वह पानी जैसा हो जाए, ताकि वह पाचन प्रक्रिया में आसानी से घुल-मिल जाए। योगियों का भी कहना है कि भोजन को पेट में पचाने के बजाय मुंह में ही पचाने का प्रयास करें । 

सामान्य मनुष्यों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे खाना निगलते हैं, किंतु जनवरी की तरह फिर से उस भोजन को पेट से वापस निकाल कर मुंह में चबाने की क्षमता नहीं होती। इसलिए हमें पहले ही चबाने की प्रक्रिया से गुजारना पड़ता है ताकि खाना सलाइवा से मिक्स होकर अंदर जाए और फिर वापस न निकालना पड़े। यदि आप सही तरीके से चबाए बिना निगलते हैं, तो उसके बाद रिफ्लेक्स होता है, और खाना वापस ऊपर आता है। जानवरों में यह प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, जिसे पागुर कहते हैं, लेकिन हमारे लिए यह संभव नहीं है और इससे रिफ्लेक्स की बीमारी हो सकती है, जिससे बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

इन सभी बातों से कम से कम यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि भोजन करने का कोई समय नहीं होता है , मात्र स्वाद लेने पर ध्यान देना होता है । यही भोजन का प्रमुख नियम है । यहाँ तक कि भोजन की गुणवत्ता यदि बहुत ख़राब हो तो भोजन की मात्रा को कम कर दिया जाना चाहिए किंतु अति-आहार वर्जित है । 

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