हम अक्सर यह महसूस करते हैं कि भोजन करने के बाद भी कुछ न कुछ खाने की इच्छा बनी रहती है। यह एक सामान्य अनुभव है, लेकिन इसके पीछे की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रक्रियाओं को समझने पर हमें इसका वास्तविक कारण समझ में आता है।
जब हम भोजन करते हैं, तो हमारा पेट भरने का संकेत शरीर को मिल जाता है, जिससे हमें शारीरिक रूप से संतुष्टि महसूस होती है। लेकिन मन की तृप्ति केवल पेट भरने से नहीं होती। मन की संतुष्टि भोजन के अनुभव, विशेष रूप से उसके स्वाद और उसे चखने के तरीके से होती है।
इस बात को और गहराई से समझते हैं। मान लीजिए कि एक माँ अपने बच्चे को नींद में भोजन करवा रही है। बच्चा सोते समय भोजन करता है, उसका पेट भर जाता है, लेकिन बच्चा उस भोजन का स्वाद, उसकी खुशबू या अनुभव पूरी तरह से महसूस नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप, उसका मन संतुष्ट नहीं होता। बड़े लोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। हम भोजन तो कर लेते हैं, लेकिन उस प्रक्रिया का पूरा अनुभव नहीं कर पाते, खासकर जब हम जल्दी में हों या ध्यान भटक जाए।
यह पूरा अनुभव इस बात पर निर्भर करता है कि हम भोजन का स्वाद कितनी देर तक महसूस कर पाते हैं। जब हम भोजन करते हैं, तो हमारा ध्यान कई बार इधर-उधर होता है – हम टीवी देख रहे होते हैं, किसी और से बात कर रहे होते हैं, या हमारे दिमाग में अलग-अलग विचार चल रहे होते हैं। इस कारण से हम भोजन के स्वाद के अनुभव के स्पैन को नहीं बढ़ा पाते हैं । यदि यह स्वादानुभव का स्पैन बढ़ा हुआ है तो मन उस स्वाद को पूर्ण रूप से संग्रहित कर लेगा ।
मानव मस्तिष्क भोजन के स्वाद और अनुभव को तभी गहराई से संग्रहित करता है जब उस अनुभव की लंबाई बढ़ती है । यदि अनुभव का स्पैन बढ़ा हुआ होता है तब मन कम मात्र में किए गए भोजन से भी पूर्ण संतुष्ट हो जाता है । यहाँ तक कि अन्तर्मन को पेट के भरने के कुछ समय पूर्व ही संकेतों का अनुभव प्राप्त हो जाता है । यह सब निर्भर करता है स्वाद के अनुभव की लंबाई अर्थात् अनुभव के स्पैन का लंबा होना । यही अनुभव मन ही नहीं अंतर्मन और पेट दोनों को कुछ घंटों तक पूर्ण संतुष्ट कर देता है ।
इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है। किसी भीड़ भाड़ वाले स्थान पर उसी व्यक्ति के चेहरे को याद कर पेट हैं जिससे कोई बहंस हो जाए । अर्थात् हमारे इन्द्रियों और मन की एकाग्रता अधिक समय तक कहीं एक घटना पर टिम जाये । वही पर अन्य बहुतों के चेहरे सामने होते हुए भी हमें याद नहीं होते हैं । वह इसलिए क्योंकि मन की एकाग्रता उन सारी जगहों पर अधिक समय तक न थी ।
इसी प्रकार, भोजन के स्वाद का अनुभव भी ऐसा ही होता है। यदि हम भोजन करते समय उसके स्वाद पर पूरा ध्यान देते हैं और उस अनुभव को लंबे समय (कुछ मिनटों तक) तक बनाए रखते हैं, तो हमारा मन संतुष्ट हो जाता है। यह संतुष्टि ही हमें खाना खाते समय और खाने के बाद तृप्ति का अनुभव कराती है। किंतु यदि भोजन का स्वाद कुछ- कुछ क्षणों के लिए ही महसूस किया जाता है , बींच बींच में ध्यान का भटकाव होता है तो मन पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता।
परिणामस्वरूप, भले ही हमारा पेट भर गया हो, मन में अधूरापन बना रहता है और यही अधूरापन बार-बार कुछ खाने की इच्छा पैदा करता है। मन यह चाहता है कि उसे वह स्वाद और अनुभव फिर से मिले, उसे पेट के भरने से मतलब नहीं है , उसे अपनी संतुष्टि से मतलब है । जब तक उसे संतुष्टि नहीं मिलती तब तक वह कुछ न कुछ खट्टी मीठी वस्तुओं की माँग करता रहेगा ।
अंततः भोजन का केवल पेट भरने के लिए ही नहीं, बल्कि उसका पूरा स्वाद और अनुभव लेने के लिए होना चाहिए। उस भोजन के स्वाद के अनुभव की लंबाई वि अवधि पर ध्यान देना अधिक आवश्यक है ।
Copyright - by Yogi Anoop Academy