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अवसाद एवं हृदय रोगों के संकेत

2 years ago By Yogi Anoop

अवसाद एवं हृदय रोगों के संकेत एवं समाधान । इन्हीं संकेतों के माध्यम से योग एवं आयुर्वेद विज्ञान समाधान निकलता है । 

संकेत 

मन और इंद्रियों में बहिर्मुखता एवं नासमझी इतनी अधिक है कि वे शरीर व शरीर के अंगों के संकेतों को समझ नहीं पाती हैं । सभी अंग कहीं न कहीं संकेतों के माध्यम से

अपनी समस्याओं को मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं  जिसे मन को पहचानना पड़ता है और उसी के अनुरूप उसका निदान भी करना पड़ता है । 

99 फ़ीसदी बच्चों में पेट के दर्द का अर्थ है मल त्याग , इनका पेट संकेत देता है रहता है किंतु इन्हें यह ज्ञान ही नहीं होता कि मल त्याग के लिए है । नींद आ रही होती है , शरीर संकेत दे रहा होता है किंतु इन्हें पता नहीं चलता कि नींद के लिए अब सोना है । 

बच्चों में यह नासमझी तो समझ में आती है क्योंकि उन्हें शरीर के लक्षणों को अभी समझने का कोई अनुभव नहीं है ।

किंतु वयस्क लोगों को तो समझना चाहिए पर वे में भी दैहिक अंगों के संकेतों को समझने में असमर्थ होते हैं । मेरे अनुसार उसका प्रमुख कारण है मन इंद्रियों की आवश्यकता से अधिक बहिर्मुखता । 

मन और इंद्रियाँ बाह्य जगत में इतना अधिक उलझी हुई हैं कि अंतर्जगत के साधारण से साधारण संकेतों को समझने में असमर्थ होतीं हैं । 

कुछ वैसे ही जैसे बाह्य जगत में माने गए उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मन इतनी तीव्रता से भाग रहा होता है कि साधन शरीर तथा इंद्रियों के लक्षणों व संकेतों को अनुभव ही नहीं कर पाता  । जैसे एक धावक 100 मीटर की दौड़ में शरीर में क्या घटित हो रहा है, अनुभव नहीं सकता है । एक सामान्य आदमी का पूरा जीवन 100 मीटर की दौड़ की तरह हो जाता है । वह शरीर के अंदर के संकेतों को समझने में असमर्थ होता है । 


शरीर के अनेक संकेतों में से एक संकेत पिंडली की मांसपेशी के दर्द पर आज व्याख्या करेंगे ।  पिंडली की मांसपेशियों के अनेकों संकेत व्यर्थ ही नहीं होते हैं , यदि ध्यान पूर्वक उन संकेतों पर अध्ययन  किया जाय तो हमें ये पता चल जाता है कि पिंडली की मांशपेशी मन को क्या क्या बताना चाहती है । 


वह दर्द व खिंचाव के माध्यम से यह बताना चाह रही है कि हृदय पर दबाव पड़ रहा है । 

हृदय एक अनैच्छिक मांसपेशी है किंतु जब भावनाओं के दबाव से उस पर अधिक ज़ोर दिया जाता है तब वह स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पाता है जिससे अनैच्छिक मांसपेशी (हृदय) पर ऐक्षिक आक्रमण होता है । 

जहां तक मैंने अनुभव किया है जिसका मस्तिष्क भावनात्मक रूप से बहुत दबा या दबाया हुआ होता है, जो स्वयं की भावनाओं को बाहर की ओर अभिव्यक्ति करने में असमर्थ होता है तो उसके हृदय पर एक बोझ उत्पन्न होता है । उसका अपना अपराध बोध भी हृदय पर अत्यधिक बोझ डालता है जिससे वह हृदय अपने दबाव को पिंडली में दर्द के माध्यम से अभिव्यक्त करता है । 


ऐसे व्यक्तियों में भी जिनका मन और इंद्रियाँ बहुत तेज़ी से भाग रही होती हैं तो उनकी पिंडलियाँ दर्द के रूप में संकेत देने लगती हैं । इस प्रकार के लोगों में  पिंडली का दर्द अधिक देखा जाता है । वे अपनी भावनाओं को दबा करके उसका नकारात्मक प्रभाव हृदय पर दे देते है जिससे हृदय की धड़कन अक्सर बढ़ी हुई दिखायी देती है , इस प्रकार के लोगों को स्वयं की धड़कन निरंतर सुनाई देती रहती है । ध्यान दें हृदय की मांसपेशियों में किसी भी प्रकार का भावनात्मक दबाव होता है तब उसकी प्रतिक्रिया पिंडली पर दिखायी देने लगती है । 


विशेष रूप से पिंडली की मांसपेशियों में जब बहुत अधिक दर्द का अनुभव होता है तब  कुछ दर्द निवारक दवा से उसका आसानी से उपाय ढूँढ लिया जाता हैं किंतु समस्या ये है कि वह दर्द निवारक दवा का प्रभाव भविष्य में बहुत ही नकारात्मक दिखता है । समस्या तब बड़ी गम्भीर हो जाती है जब वह मांसपेशी धीरे धीरे संकेतो को बताना बंद कर देती और भविष्य में हृदय  और मस्तिष्क से सम्बंधित किसी गम्भीर रोग में परिणति कर देती है ।  

इसलिए ध्यान देने योग्य बातें ये है कि व्यक्ति को पिंडली की मांसपेशियों के दर्द को अनदेखा नहीं करनी चाहिए । उन्हें इसका वैज्ञानिक अभ्यास अवश्य करना चाहिए । 


विधि 

1- विशेष करके रात में सोने से पहले पिंडली की मांसपेशियों की मालिश अच्छी तरह से होनी चाहिए जिससे हृदय की गति नियमित और नियंत्रित हो जाए साथ साथ मस्तिष्क भी खिंचाव रहित अवस्था में आ जाय । इस प्रक्रिया से विचारों में भी ढीलापन आ जाता है साथ साथ व्यक्ति को गहरी निद्रा आती है जिससे उसकी दिनचर्या बेहतर होने लगती है ।


2- विशेष रूप से दिन भर के शारीरिक और मानसिक तनाव के बाद शाम को पिंडली में खिंचाव अवश्य देना चाहिए । इस खिंचाव से हृदय और मस्तिष्क पुनः रीचार्ज हो जाता है । विशेष रूप से रात्रि काल में मन शांत और व्यवस्थित रहता है । उसे किसी भी प्रकार के ड्रग व मदिरा के सेवन की आवश्यकता नहीं पड़ती है । 


3- सुबह व किसी भी समय, एक position में खड़े हो करके अपनी दोनों हाथों की उँगलियों को फँसा लें और उसके बाद अपनी रीढ़ को बिल्कुल सीधी रेखा में करते हुए  

सर्वप्रथम अपनी दोनों एड़ियों को जोड़ कर उसे धीरे धीरे ऊपर ले जायँ और कम से कम 2 मिनट तक ऊपर ही रोके रखें जिससे पिंडलियों में दर्द का एहसास होने लगे । 

एड़ियों को ऊपर करके अधिक समय तक रोकने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है पिंडलियों में रक्त के संचार को बढ़ाया जा सके जिससे हृदय पर तनाव अधिक न आए ।

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