ऐंज़ाइयटी वालों को प्राणायाम की आदत मुश्किल से होती है ।
ऐंज़ाइयटी वाले लोगों में मांसपेशियों को खींचने की आदत तो बहुत पड़ जाती है, किंतु साँसों का अभ्यास नहीं हो पाता । वे उसमें बोरियत अनुभव करते हैं ।
मांसपेशियों को खींचने से उनके अंदर good hormonal secretion होता है किंतु जब भी वे प्राणायाम करना शुरू करते हैं उन्हें उलझन होने लगती है ।छाती वाले प्राणायाम तो बिल्कुल भी नहीं पाते है ऐसे लोग । जहां तक मैंने अपने अनुभव में पाया है इस प्रकार के लोग साँसों के धीरे धीरे नहीं ले पाते है , और साथ साथ साँसों को धीरे छोड़ भी नहीं पाते हैं । चूँकि उन्हें हर एक कम बहुत जल्दी जल्दी करने की आदत होती है इसलिए इसलिए प्राणायाम में भी धीरे धीरे वाली क्रिया नहीं हो पाती है ।
इनके मस्तिष्क और फेफड़ों के कोशिकाओं में ऑक्सिजन की absorption की क्षमता भी बहुत कम रहती है , इसीलिए देखा गया है कि छोटी छोटी समस्याओं के आने पर इनके साँसो का और हृदय का rhythm बहुत fluctuate करने लगता है ।
यहाँ पर एक और बात बहुत महत्वपूर्ण है कि केवल लंग्स और हृदय की मांसपेशियाँ ही नहीं बल्कि शरीर की अन्य मांसपेशियाँ का अभ्यास बहुत जल्द जल्दी करते हैं । बहुत हाइपर हो कर करते हैं । जो भविष्य में उनके लिए कुछ और ही ख़तरनाक हो जाता है , वे और ही anxious होने लगते है ।
इस प्रकार के लोगों वही कार्य करना पसंद करते हैं जिसमें त्वरित लाभ मिले , जिसके तुरंत रिज़ल्ट मिल जाय , जैसे स्वाद , जैसे गंध इत्यादि ।
ऐसे भोजन पसंद होंगे जो तुरंत बहुत स्वाद दे , जिसमें स्वाद निकालने के लिए मेहनत न करनी पड़े । सूखी रोटी पसंद नहीं होगी , पराठा पसंद होगा क्योंकि पराठा मुँह में रखते ही स्वाद बतला देता है । रोटी को तो थोड़ी देर चबाना पड़ेगा तब जा करके स्वाद निकलेगा ।
ऐसी हार्ड स्मेल पसंद होगी जैसे पर्फ़्यूम । उन्हें अपनी शरीर नैचरल स्मेल नहीं आ पाती है आती भी है तो बड़ी भयानक होती है इसीलिए वे हार्ड स्मेल पसंद करते हैं ।
उन्हें अपनी साँसों से कोई अच्छी ख़ुशबू नहीं अनुभव होती है इसीलिए वे इसके ऐडिक्ट नहीं हो पाते हैं उन्हें साँसों को लेना और छोड़ना बहुत ही बोरिंग का कम लगता है । यदि उसी जगह उनकी साँसों में स्मेल होती तो उन्हें कोई बोरियत न होती । वे घंटी घंटी तक साँसों को सूंघते रहते , किंतु साँसों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है वो बिना स्मेल के है , शायद इसीलिए मस्तिष्क के लिए सबसे आवश्यक है । यदि उसने कोई सुगंध व दुर्गंध होती तो यह मनुष्य जाती कब की समाप्त हो गयी होती ।
ऐंज़ाइयटी वाले लोगों को प्रिकॉशन की बजाय ऐक्टिविटी पर ध्यान देना चाहिए .
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