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आँखों का सेक्स इक्षाओं से संबंध

2 years ago By Yogi Anoop

सेक्स रोग का संबंध आँखों से सबसे अधिक होता है ।

मनुष्यों एक ऐसा जीव है जो ज्ञानेंद्रिय और कर्मेन्द्रिय प्रधान है, इसकी सभी इंद्रियाँ अन्य जीवों की अपेक्षा कहीं अधिक विकसित हैं । अन्य जीवों में तो ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ उतनी विकसित व स्वतंत्र नहीं होतीं जितनी मनुष्यों में ।

  

    मेरे अपने अनुभव में सभी इंद्रियों में आँख एक ऐसी ज्ञानेन्द्रिय है जो बिना बोले ही भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ होती है । चाहे वह क्रोध हो , प्रेम हो, सेक्स हो, ख़ुशी व दुख हो, सभी भावनाओं को इन आँखों के माध्यम से देखा जा सकता है । जबकि अन्य इंद्रिय जैसे नाक कान जीभ व त्वचा से भावनाओं को आसानी से न तो देखा जा सकता है और न ही समझा जा सकता है । भला नाक कान व जीभ से दुख व सुख को कैसे कोई देख सकता है । 

यहाँ तक कि अन्य सभी इंद्रियों की अपनी इक्षाओं व आवश्यकताओं को भी इन्हीं आँखों के माध्यम से बहुत हद तक प्रकट करना पड़ता है ।

यदि और गंभीरता से देखा जाये तो ऋषियों ने तीसरे नेत्र की बात की, उन्होंने कभी ये तो नहीं कहा कि दूसरी नाक ,दूसरा मुँह, दूसरी त्वचा या दूसरी जीभ । 

एक अन्य नेत्र से उनका तत्पर्य यही था कि मन को एक ऐसी न्यूट्रल स्थान (थर्ड आई) पर मन को ले ज़ाया जाये जिससे इन दोनों आँखों को रेस्ट मोड पर ले ज़ाया जा सके ।

चूँकि ज्ञान का सबसे प्रमुख श्रोत ये दोनों आँखें ही हैं, जिसके माध्यम से 2d, 3d, 4d व 5d को देखा जा सकता है , और स्मृति में भी इन्ही दोनों आँखों का सबसे अधिक महत्व होता है । यहाँ तक स्वप्न में भी मन सबसे अधिक आँखों का ही इस्तेमाल करता है । इसीलिए इन्ही दोनों में सबसे अधिक थकान होती है ।


इसीलिए इन आँखों में सबसे अधिक तनाव देखा जाता है, क्योंकि ये आवश्यकता से अधिक कार्य करतीं हैं । प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जो भी ज्ञान बाहर से अंदर की ओर आँखों के माध्यम से ग्रहण किया जाता है वे सभी के सभी आँखों की मांसपेशियों को थका देते हैं । 


मेरे अनुभव में ये आँखें जितनी अधिक थकती हैं उतना ही अधिक व्यक्ति के अंदर तनाव, डिप्रेशन, सेक्स व हिंसा का जन्म होता है । 

इसीलिए ऋषियों ने एक ऐसी जगह पर ध्यान एकाग्र करने की बात की जिसे वे तीसरा नेत्र अर्थात् (Third Eye) कहते हैं, जिससे ये दोनों आँखें जो सदा तनाव में रहती हैं, शांत और ढीली हों जायें । उसके अंदर से थकान निकल जाय और यह मस्तिष्क जो विचारों के चोटों से 24वों घंटे परेशान रहता है बच जाये । 


  ध्यान दें ऋषियों ने तीसरे नेत्र पर ध्यान देने की बात इसलिए की कि ये दोनों आँखें ढीली और शांत स्थिर हो जायें किंतु उन्हें क्या पाता था कि उस तीसरी आँख वाली जगह पर इतना अधिक घूरा जाएगा कि वह जगह ही हिल जाएगी । 

और उस घूरने से पूरे मस्तिष्क में हार्मोनल इम्बैलेंस हो जाएगा । 

साथ उस घूरने से आँखें भी और तनावग्रस्त हो जाती हैं । मैंने तो यहाँ तक देखा है कि इस तनाव से ध्यान करने वाले साधकों में सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन  और पागलपन अधिक बढ़ जाता है । 

ऐसे लोगों में मैंने तो सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन का लेवल इतना अधिक देखा है कि वे जानवरों से भी सेक्स करने पर सोचने लगते हैं । हर वक्त सेक्सुअल कल्पनाओं में ही डूबे रहते हैं । 


बहुत सारी योगिक साधना में आँखों पर बहुत ही अनावश्यक ज़ोर दिया जाता जिससे आँखें की मांसपेशियाँ तनाव रहने की आदी हो जाती हैं । विशेषकरके जब आँखों को किसी एक विशेष चित्र पर आवश्यकता से अधिक देर तक केंद्रित कर दिया जाता है तब उसके अंदर सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन और मानसिक पागलपन पैदा होने लगता है ।

किंतु साधक वि सामान्य व्यक्ति इस रहस्य को नहीं समझ पाता है । वह समझता है कि उसका अभ्यास आध्यात्मिक है तब क्यों सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन पैदा हो रहा है किंतु वास्तविकता में वह वह उसके पीछे के रहस्य को समझ ही नहीं पाता है । 

यहाँ तक कि इन आँखों पर अनावश्यक तनाव देने से लिवर, डायफ्रैग्म और पेट पर भी गंभीर रूप से पड़ता है । हमारा विज्ञान यहाँ तक तो पहुँच गया कि लिवर में कुछ समस्या के आने पर उसका प्रभाव आँखों पर दिख जाता है , जैसे पीलिया वि jaundice के होने पर आँखों में पीलापन आ जाता है । किंतु आँखों में तनाव आने पर उसका दुष्प्रभाव किन किन अंगों पर पड़ता है, इसका पता नहीं लगा पाएगा । 


इसीलिए मैं दोनों आँखों की मांसपेशियों को बहुत गहराई से शांत करने पर ज़ोर देता हूँ , ध्यान में ही नहीं बल्कि दिन भर की सामान्य व असामान्य गतिविधियों में भी कोशिश यही होनी चाहिए कि इन दोनों आँखों में तनाव कम से कम रहे । इससे मस्तिष्क पर विचारों का चोट नहीं पड़ने पाता है ।  

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