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आज के गुरु, गुरु नहीं बल्कि कवि हैं

3 years ago By Yogi Anoop

आज के गुरु, गुरु नहीं बल्कि शायर और कवि हैं 

“मैं रोज़ गुनाह करता हूँ वो बक़्स देता है” 

शराब तुम पियो, लिवर वो ठीक करेगा, यहाँ औरतों पर जुल्म करो, ऊपर वो वर्जन लड़की दे देगा । यहाँ आतंकवाद मचाओ और वहाँ वो जन्नत भेज देगा  । ऐसे लक्षेदार बातों से जब उन्हें लगता है कि उनके शिष्यों  का सिर भारी होने लगा है तब ये गुरु सैद्धांतिक पाला बदलने में देरी नहीं करते और उनके मुख से गीता के ये भारी भरकम श्लोक 


“कर्म जैसा करोगे वैसा ही मिलेगा” 


निकल ही पड़ते हैं । ऐसा लगता है स्वयं गीता जैसी पवित्र पुस्तक इनके मुँह से कर्म योग पर चिल्ला रही है । किंतु फिर से थोड़े समय के बाद ये फिर पाला बदल देते हैं । इसलिए ये अनुभवों को कैसे बताएँ । इन्हें पता ही कि व्यवहार में क्या होता है , कभी व्यावहारिक अनुभव किया ही नहीं । हमेशा शेरो शायरी और कविता बाज़ी में समय निकाल दिया । 

ऐसे कवि गुरुओं का लक्ष्य अपनी रटी-रटायी स्क्रिप्ट के अनुसार दर्शकों को अल्पकालिक समय के लिए ख़ुश करना होता है न कि अपना अनुभव व्यक्त करना होता है । इसीलिए वे विचारो को बदलते रहते हैं -

किसी अनुभव से कभी गुज़रे ही नहीं इसलिए बहुत गहराई वाली बातें नहीं कह पाते हैं, वे ऐसी बातें करते हैं जो मात्र कल्पनात्मक ही होता है ।  

उन्हें जब कुछ नहीं समझ नहीं आता है तब ये कहते हैं । 


“उसके नीचे सिर झुकाओगे तो तक़दीर बदल जाएगी” 


वहाँ जनता जो सुन रही है भावुक हो कर कानों को ही नहीं पूरी अंतरात्मा को खोल चुकी होती है, उनके अंदर जो भी खिचड़ी ज्ञान गया है उनसे उनकी आत्मा भी कन्फ़्यूज़्ड हो जाती  है  । और आप देखते होंगे सत्संग से निकलने के बाद व्यक्ति जस का तस रहता है । 


    यह सत्य है कि ये सभी बातें शेरो शायरी में अच्छी लगती हैं किंतु । थोड़ी देर के लिए बेचैन मन बहल जाता है । बहुत सारे लोगों का लक्ष्य स्वयं को बदलना भी नहीं होता है , उनका तो केवल एक ध्येय है अपने मन को बहलाना । इसीलिए ऐसे लोग एक गुरु से दूसरे गुरु  का रास्ता नापते रहते हैं । 


किंतु मैं कहता हूँ कि जब मन को बहलाना ही था तो गुरू के पास गए ही क्यों ?  बहलाने के तो अन्य कई साधन मिल सकते हैं ।

, बहलाने के लिए भौतिकता व  गर्ल फ़्रेंड और boy फ़्रेंड का चक्कर में पड़ा लिया होता , और बहलाना  होता तो शादी और बच्चे पैदा कर लिया होता  । 

किंतु सत्य यह है इन भौतिकता के चक्कर में पड़ने के बावजूद भी मन स्थिर और शांत नहीं हो पाता है । 


  ध्यान दो समाधान इससे न निकल पाएगा । लक्षेदार भाषाओं के चक्कर में न पड़कर अनुभव से गुज़ारो स्वयं को । यह मुश्किल अवश्य है , इसमें मेहनत ज़रूर है पर क्या क्या दुःख को भोगने में मेहनत नहीं करनी पड़ती है !

मैं तो कहता हूँ कि दुःख को भोगने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है । रात में जिसे नींद नहीं आती है , उससे पूछो कि नींद लाने के लिए उसे क्या क्या करना पड़ता है । वह न रुकने  वाले विचारों से परेशान रहता है किंतु प्राणायाम नहीं कर पाता है । बहुत सारे अनिद्रा से पीड़ित व्यक्ति यह कहते हुए पाए जाते हैं कि प्राणायाम बहुत बोरिंग व उबाऊ होता है । इसीलिए वे सोने के पहले वे प्राणायाम नहीं कर पाते हैं । किंतु सोने के लिए तड़पते रहते हैं ये बर्दाश्त है । 

अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि अपनी ज्ञानेंद्रयों और कर्मेंद्रियों पर काम करो । साधना की शुरुआत स्वयं से करो । यदि ये न कर सके तो मन भागता  रहेगा , कभी शांति न मिल सकेगी । 


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